पं. नेहरू ने चंद दिनों बाद ही तोड़ दिया था डॉक्टर लोहिया से किया यह वादा
इंटरनेट डेस्क। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और समाजवादी पुरोधा डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आजीवन एक दूसरे के जबरदस्त राजनीतिक विरोधी रहे। लेकिन उनके व्यक्तिगत संबंध हमेशा मित्रवत रहे। यह बात उन दिनों की है जब 1962 में डॉक्टर लोहिया ने पं. जवाहर लाल नेहरू के विरूद्ध उनके संसदीय क्षेत्र फूलपुर से पर्चा दाखिल किया। इसके बाद उन्होंने अपने मित्र नेहरू को एक पत्र लिखा जो इस प्रकार है-
डियर प्रेसिडेंट,
जब मैंने कांग्रेस कमिटी छोड़ा था उस वक्त अरुणा आसिफ अली मेरे साथ थी, वह हमारी आखिरी मुलाकात थी। इस चुनाव में आपकी जीत पक्की है। लेकिन अगर इस जीत पर अगर अनिश्चितता के बादल छाते हैं और यह आपकी हार में बदल जाती है, तो मुझे बेहद खुशी होगी। शायद यह मुल्क के लिए बेहद फायदेमंड साबित होगा। ताकि आप को अपने भीतर सुधार लाने और एक बेहतर इंसान बनने का मौका मिलेगा। अंत में कामना करता हूं कि आप दीर्घायु बनें।
आपका
राम मनोहर लोहिया
डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के इस पत्र का जवाब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किस प्रकार एक बार उसे भी बड़े ध्यान से पढ़ें।
डियर राम मनोहर
आपका पत्र तो मिला लेकिन ना ही उसमे में तारीख लिखी है और ना ही पता। मैं अपने इस पत्र को सोशलिस्ट पार्टी, इलाहाबाद के कार्यालय के पते पर भेज रहा हूं। मुझे खुशी है कि ऐसी शख्सियत मेरे खिलाफ चुनाव लड़ रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह चुनाव राजनीतिक कार्यक्रमों पर आधारित होगी। लेकिन सोचता हूं कि कहीं यह चुनाव व्यक्तिगत आक्षेपों पर सिमटकर ना रह जाए। मेरा आपसे वादा है कि मैं अपने लोकसभा क्षेत्र में एक दिन भी चुनाव प्रचार करने नहीं जाउंगा।
आपका
जवाहर लाल नेहरू
उन दिनों राम मनोहर लोहिया के साथ चुनाव प्रचार में सक्रिय रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष विनोद दूबे के अनुसार, पं. नेहरू के मुकाबले डा. लोहिया इक्के (तांगे) पर बैठकर चुनाव प्रचार किया करते थे। तांगे पर ही लाउड स्पीकर लगाकर लोहिया एक गांव से दूसरे गांव में जाकर प्रचार किया करते थे और तांगे को अपना राजनीतिक मंच बना लिया था।
सोशलिस्ट पार्टी के दफ्तर में खाने के नाम पर लाई और चना मिलता था। लोहिया ने इतना जबरदस्त प्रचार किया कि अपना वादा तोड़कर नेहरू को फूलपुर आना पड़ा। पं. जवाहर लाल नेहरू कई गाड़ियों के काफिले के साथ चुनाव प्रचार करते थे। चुनावी रणक्षेत्र में लोहिया जी ने पं. नेहरू को कड़ी टक्कर दी थी, लेकिन वह चुनाव हार गए। बावजूद इसके चुनाव प्रचार खत्म करने के बाद डॉ. लोहिया आनंद भवन में बैठकर पं. नेहरू के साथ चाय पिया करते थे।