पाकिस्तान के नरोवाल शहर से करीब एक घंटे की दूरी पर मौजूद छोटा सा गांव करतारपुर रावी नदी के किनारे बसा हुआ है। करतारपुर के चर्चा में बने रहने की असली वजह यह है कि यहीं पर सिख धर्म के पहले गुरू नानक देव ने अपनी अंतिम सांसें ली थी। गुरू नानक देव ने करतारपुर को बसाया था।

करतारपुर से महज तीन किमी की दूरी पर गुरुदासपुर बॉर्डर है। मतलब आप हिंदूस्तान पहुंच गए। भारत-पाक बंटवारे के समय सिखों को यह विश्वास था कि करतारपुर उनके हिस्से में आएगा, लेकिन यह हिस्सा पाकिस्तान के अधीन हो गया। विभाजन के बाद से ही भारत के सिख यही चाहते हैं कि उन्हें करतारपुर गुरुद्वारे तक जाने की अनुमति प्रदान की जाए। इस इलाके को ऐसा बनाया जाए जहां जाने के लिए वीजा की जरूरत नहीं पड़े, ताकि सिख श्रद्धालु आसानी करतारपुर गुरुद्वारे में दर्शन करके भारत लौट आएं।

करतारपुर गुरुद्वारे से जुड़ी प्रमुख बातें...

वर्तमान में करतारपुर गुरुद्वारे की जो इमारत खड़ी है, वह साल 2001 में बनाई गई है। गुरू नानक देव की बनवाई हुई इमारत रावी नदी में आई एक बाढ़ के दौरान बर्बाद हो गई थी।

आस पास के गांवों में रहने वाले मुसलमान इस गुरूद्वारे के लंगर के लिए चंदा देते हैं। जिन्ह चूल्हों पर लंगर पकता है, उसकी लकड़ियां पाकिस्तानी सेना देती है। यह एक अलग बात है कि दो मुल्कों में पनपे आपसी मतभेद के चलते भारत के लोग इस पवित्र जगह का दर्शन दूरबीन से करते हैं।

गुरू नानक देव जी जब तक जीवित रहे उन्होंने सभी इंसानों को एक साथ मिलकर रहने की बात कही। ताकि सभी लोग अपना जाति-धर्म भूलकर साथ मिलें, साथ खाएं। इस वास्ते करतारपुर वास्तव में धरती की सबसे पवित्र जगह है।

दूरबीन से दर्शन कर लेते हैं भारतीय श्रद्धालु

करतारपुर गुरूद्वारे के बाहर एक बम आज भी पड़ा हुआ है। बताया जाता है कि 1965 में हुई भारत-पाकिस्तान की लड़ाई में यह गुरूद्वारे के पास गिरा लेकिन फूटा नहीं। इस बम को चबूतरे में मढ़कर रख दिया गया है। इसके पास में एक तख्ती रखी है, जिस पर लिखा है वाहे गुरु जी का चमत्कार।

गौरतलब है कि भारत का सिख समुदाय सरहद के इस पार एकत्र होकर गुरुद्वारे की तरफ देखते हैं और यही नानक जी का नाम लेकर मत्था टेक लेते हैं। करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए बीएसएफ ने एक दर्शन स्थल बना रखा है। दरअसल यहां एक दूरबीन लगा हुआ है, जिसके सहारे भारतीय श्रद्धालु तीन किमी. दूर से ही करतापुर गुरूद्वारे का दर्शन कर सकें।

यहीं से सिख श्रद्धालु गुरुद्वारे की तरफ मुंह करके दूरबीन से गुरुद्वारा साहिब का दर्शन करते हैं और प्रार्थना करते हैं। इस प्रकार बिना किसी वीजा के ही श्रद्धालुओं की आंखें करतारपुर साहिब का दर्शन कर लेती हैं।

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