इंटरनेट डेस्क। आम चुनाव 2014 में पूरे देश में मोदी लहर व्याप्त थी। जिसका फायदा प्रत्यक्ष तरीके से बीजेपी तथा उसके सहयोगी दलों को मिला। साल 2014 में एनडीए को कुल 337 सीटें मिली थीं। जब कि अकेले बीजेपी 282 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। जिसमें सबसे ज्यादा योगदान यूपी का रहा। कुल 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बीजेपी 42.3 प्रतिशत वोटों के साथ 71 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। जबकि राजस्थान की सभी 25 सीटें भी बीजेपी के खाते में गई थीं। यहां तक कि मध्यप्रदेश की कुल 29 सीटों में 27 सीटें बीजेपी को मिली थी। बिहार की 40 सीटों में 22 सीटें बीजेपी के खाते में गईं थी। दिल्ली की सातों सीटों पर बीजेपी ने फतह हासिल की थी। अंडमान ऐंड निकोबार की एक सीट वो भी बीजेपी ने जीती थी। जब कि उत्तराखंड, कुल 5 सीटें जीतने में बीजेपी कामयाब रही थी।

2014 की तरह 2019 में भी बीजेपी के लिए मुश्किल साबित होंगे तीन बड़े राज्य

आपको जानकारी के लिए बता दें कि आम चुनाव 2014 में तीन बड़े राज्यों आंध्रप्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा तमिलनाडु में बीजेपी को निराशा हाथ लगी थी। साल 2014 में आंध्रप्रदेश की कुल 42 सीटों में बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थी। वहीं पश्चिम बंगाल की कुल 42 सीटों पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने 34 सीटें अकेले फतह की थी। जबकि बीजेपी को पश्चिमी बंगाल में मात्र 2 सीटें मिली थीं। तमिलनाडु में भी कुल 39 सीटें हैं जिसमें बीजेपी को मात्र 01 सीट पर विजय हासिल हुई थी।

अभी हाल में ही चंद्रबाबू नायडू ने कांग्रेस के साथ मिलकर मोदी सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाकर अपनी मंशा जता दी है कि 2019 लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु बीजेपी के लिए मुश्किल साबित करने वाला है। जबकि ममता बनर्जी इन दिनों मोदी सरकार के विरूद्ध विपक्षी पार्टियों को एकजुट करती दिख रही हैं। अत: यह बात बिल्कुल साफ हो चुकी है कि पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी बीजेपी का सुपड़ा साफ करने के चक्कर में हैं। सवाल तमिलनाडू का है तो यह राज्य लोकसभा चुनाव 2019 में किस करवट बैठेगा कुछ कहा नहीं जा सकता है।

यूपी में सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चक्रव्यूह

यह साफ हो चुका है कि मोदी की लोकप्रियता पहले से काफी कम हो चुकी है, क्योंकि साल 2018 तक बीजेपी की सीटें 282 से घटकर मात्र 273 रह गई हैं। सपा-बसपा के गठबंधन के चलते बीजेपी लोकसभा उपचुनाव में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की सीट गोरखपुर तथा डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सीट फूलपुर बुरी तरह से हार चुकी है। वहीं कैराना सीट पर सपा, बसपा और कांग्रेस के समर्थन से रालोद प्रत्याशी ने बीजेपी उम्मीदवार को हराया। मतलब साफ है कि सपा-बसपा गठबंधन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बनने वाले हैं।

सपा-बसपा गठबंधन का इतिहास

भारतीय राजनीति में यूपी हमेशा से देश का प्रधानमंत्री तय करता रहा है। इस बार सपा—बसपा ने मोदी सरकार के विरूद्ध गठजोड़ कर लिया है। साल 1993 इस बात का गवाह रहा है कि राम मंदिर लहर के बावजूद सपा-बसपा गठबंधन ने बीजेपी को मात दी थी, और मुलायम सिंह यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने थे। उन दिनों एक नारा खूब पॉपुलर हुआ था- मिले मुलायम कांशीराम और हवा में उड़ गए जय श्री राम। बाबरी विध्वंस के बाद राम मंदिर लहर के सैलाब को सपा-बसपा गठबंधन ने डूबाने का काम किया था। लिहाजा लोकसभा चुनाव 2019 में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल सकता है, अब जब कि देश में मोदी लहर भी नहीं दिखाई दे रही है।

सपा और बसपा के समर्थक इन दिनों बुआ-भतीजा जिंदाबाद का नारा लगाने में मशगूल हैं। खबरों के अनुसार, लोकसभा चुनाव 2019 में सपा-बसपा गठबंधन कुल 80 सीटों में से करीब 50-55 सीटों पर विजयश्री हासिल कर सकती है। जबकि बीजेपी के खाते में केवल 15-20 सीटें ही आ सकती हैं।

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य दे सकते हैं धोखा

लोकसभा चुनाव 2014 के समय राजस्थान में बीजेपी की सभी 25 सीटों पर विजय श्री हासिल की थी। लेकिन अभी कुछ ही महीने में राजस्थान में विधानसभा चुनाव होनें और इस राज्य में बीजेपी एक तरफ पार्टी भीतरघात से परेशान है तो दूसरी तरफ राज्य में बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में विधानसभा चुनाव का सीधा असर 2019 लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिल सकता है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार राज्यव्यापी किसान आंदोलन से परेशान रही हैं। इस राज्य में भी सत्ता विरोधी लहर की संभावना नजर आ रही हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस ने दिग्गज नेता कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंपकर सीधे तौर पर शिवराज सिंह चौहान को चुनौती दे डाली है। छत्तीसगढ़ सरकार कई आरोपों से पहले ही घिरी नजर आ रही है। ऐसे में जिन 4 राज्यों यूपी, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ ने बीजेपी को बहुमत हासिल करने में मदद की थी, इन राज्यों में बीजेपी की स्थिति बहुत बढ़िया नहीं कही जा सकती है।

लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार की स्थिति

लोकसभा चुनाव 2014 में बिहार की 40 सीटों में 22 सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी। लेकिन ठीक उसके एक साल बाद ही साल 2015 में मोदी लहर को कांग्रेस, जेडीयू और राजद के महागठबंधन ने धूल चटा दी थी। बिहार की 243 सीटों वाली विधानसभा में राजद को 80 सीटें, कांग्रेस को 27 सीटें तथा जेडीयू को 71 सीटें मिली थीं। वहीं बीजेपी मात्र 53 सीटों पर ही सिमट गई थी। हांलाकि बाद में जेडीयू ने बीजेपी से सांठगांठ कर नीतीश कुमार ने गठबंधन की सरकार बना ली।

अब लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार की सियासी राजनीति में काफी बदलाव देखने को मिल सकते हैं। बिहार में हुए हालिया विधानसभा उपचुनाव में राजद ने अधिकांश सीटों पर विजयश्री हासिल की है। आम चुनाव 2019 में सीटों के बंटवारे को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी में कुछ खास तालमेल बनता नहीं दिखाई दे रहा है। ऐसे में सत्ता विरोधी लहर के परिणामस्वरूप कांग्रेस और राजद मिलकर लोकसभा चुनाव 2019 में भी बिहार की अधिकांश सीटें अपने नाम कर सकते हैं।संभव है लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी यूपी, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी अधिकांश सीटें बचाने में कामयाब हो जाए लेकिन ऐसा होता संभव नहीं दिखाई दे रहा है। बदले सियासी हालात के चलते आम चुनाव 2019 मोदी सरकार के लिए मुश्किलों भरा साबित होने वाला नजर आ रहा है।

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