बम्बई पर लिखी गई सबसे अच्छी किताबों में से एक मैक्सिमम सिटी के लेखक सुकेतु मेहता के मुताबिक, बम्बई में मुसलमान, हिंदू हो या क्रिश्चियन कोई कुछ भी फॉलो करता था, लेकिन बाल ठाकरे के आने के बाद सब कुछ बदल गया। आरएसएस की तरह ही शिव सेना ने हर गली-मोहल्ले में अपनी शाखाएं खोलनी शुरू कर दी। पहले शुरू हुई गली की राजनीति, इसके बाद गली-मोहल्ले की पंचायती, भाषणों में बम्बईया बोली, किरायेदार-मकान मालिक के झंझट, बाबूओं के भ्रष्टाचार यहां तक कि घर-परिवार की लड़ाइयां भी निपटाए जाने लगे। बंबई में जबरदस्त तरीके से हिंदू त्यौहार मनाए जाने लगे। देखते ही देखते शिव सेना की एक फौज खड़ी हो गई।

एक बाल ठाकरे ने कहा था कि शिव सैनिक का मतलब कोई पोस्ट लेना नहीं, बल्कि यह एक स्टेट ऑफ़ माइंड है। मराठी लोगों को अब बाल ठाकरे में अपना तारणहार दिखने लगा था। आपको जानकारी के लिए बता दें कि साल 1967 में अखबार नवकाल के जरिए कहा था कि अब भारत में हिटलर की जरूरत है।

शिवसेना ने डिमांड रखी की सरकारी नौकरी में मराठियों को 80 फीसदी आरक्षण मिले। यहां तक राज्य सरकार के हाउसिंग बोर्ड के घरों में भी इन्हें 80 फीसदी आरक्षण दिया जाए। 1969 में जब शिवसेना ने महाराष्ट्र-कर्नाटक बॉर्डर का मुद्दा उठाया तो राज्य सरकार ने बाल ठाकरे को पहली और आखिरी बार गिरफ्तार किया।

बता दें कि बाल ठाकरे के गिरफ्तार होते ही दंगे हो गए। इस दंगे में 151 पुलिस वाले तथा 69 लोग मारे गए जबकि 250 से अधिक घायल हुए। इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार ने जेल में बंद बाल ठाकरे से गुजारिश की कि अपने लोगों को रोको। करीब 7 दिन तक चले दंगों के बाद ​बाल ठाकरे अपने लोगों को रोका। इसके बाद दोबारा कभी बाल ठाकरे को अरेस्ट नहीं किया गया।

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