एमजे अकबर, नजमा हेपतुल्लाह, शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी भारतीय जनता पार्टी के बड़े मुस्लिम चेहरे माने जाते हैं। लेकिन इस स्टोरी में आज हम एक ऐसे बड़े मुस्लिम चेहरे की बात करने जा रहे हैं जिसे बीजेपी अपना फाउंडिंग मेंबर कहती रही।

जी हां, दोस्तों इस शख्स का नाम था सिकंदर बख़्त। पद्म भूषण से नवाजे गए सिकंदर बख्त पहले कांग्रेस में थे, इसके बाद कुछ दिनों के लिए विदेश मंत्री रहे फिर राज्यपाल बने रहने के दौरान इनकी मौत हो गई।दिल्ली के एंग्लो-अरेबिक कॉलेज से पढ़े सिंकदर बख्त का जन्म 1918 में एक तंबाकू विक्रेता परिवार में हुआ था। स्कूली दिनों में हॉकी खेलने वाले सिकंदर 1945 तक भारत सरकार के सप्लाई डिपार्टमेंट में क्लर्क थे।

1952 में कांग्रेस पार्टी से सिंकदर बख्त एमसीडी चुनाव जीत गए। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1968 में दिल्ली इलेक्ट्रिक सप्लाई अंडरटेकिंग के चेयरमैन बनाए गए। जब कांग्रेस का विभाजन हुआ तब उन्होंने इंदिरा कांग्रेस का साथ नहीं दिया, लिहाजा 25 जून 1975 को जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई, तब सिकंदर बख्त को जेल में ठूंस दिया गया।

दिसंबर 1976 तक रोहतक जेल में रहा सिकंदर बख्त ने आपातकाल खत्म होने के बाद जनता पार्टी ज्वाइन कर लिया। 1977 में वह दिल्ली के चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव लड़े और जीत भी गए। सिकंदर बख्त को मंत्री बनाया गया। वह 1979 तक वो मंत्री रहे। मतलब साफ है मोरारजी देसाई की सरकार में सिकंदर बख्त कैबिनेट मिनिस्टर बने।

आपातकाल के दिनों में सिकंदर बख्त और अटल बिहारी वाजपेयी की दोस्ती चल निकली थी। ऐसे में जब जनता पार्टी से टूटकर भारतीय जनता पार्टी बनी, उन दिनों सिकंदर बख्त भी बीजेपी में शामिल हो गए। सिकंदर बख्त को पार्टी महासचिव बना दिया गया। इसके बाद 1984 में वह पार्टी उपाध्यक्ष भी बनाए गए। पार्टी के शुरूआती दिनों में भाजपा के अकेले मुस्लिम नेता थे। 1990 में वह मध्य प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए। इसके बाद 1992 में राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाए गए। इतना ही नहीं 1996 में उन्हें फिर से राज्यसभा सदस्य बना दिया गया।

1996 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने सिकंदर बख्त को शहरी मामलों का मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन वह इससे खुश नहीं थे। पत्रकार राजदीप सरदेसाई से उन्होंने इंटरव्यू के दौरान कहा कि मुझे पता है कि तुम मुझसे यही पूछोगे कि क्या मेरे मुसलमान होने की वजह से मेरी वरिष्ठता को सम्मान नहीं मिला?

ठीक इसके कुछ दिनों बाद सिंकदर बख्त को विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। लेकिन संयोग से अटल की सरकार महज 13 दिन बाद ही गिर गई। लेकिन सरकार गिरने के बाद भी उन्हें राज्यसभा में नेता विपक्ष बना दिया गया। एक ऐसा दौर भी आया जब 1997 में बीजेपी अध्यक्ष पद की कुर्सी पर लालकृष्ण आडवाणी विराजमान थे। उन दिनों सिकंदर बख्त ने खुलकर यह कहा कि पार्टी अध्यक्ष के नियमों को लेकर आडवाणी से उनके मतभेद हैं।

बख्त का ऐसा मानना था कि किसी भी पार्टी अध्यक्ष को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने सुंदर सिंह भंडारी को बीजेपी अध्यक्ष बनाने की मांग की। कुछ संकेतों के आधार पर उन्होंने यह भी माना कि वह खुद भी बीजेपी अध्यक्ष बनना चाहते थे। लेकिन सीनियर नेताओं को ही उनका नाम आगे करना था।

भाजपा के अधिकांश मुसलमान राजनेताओं की तरह सिकंदर बख्त ने भी एक हिंदू महिला से शादी की थी। उनके दो बेटे हुए एक का नाम अनिल बख्त तो दूसरे का नाम सुनील बख्त है।

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