बिहार के दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं। एक ग्रैंड अलायंस और दूसरा नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए। यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि दोनों दलों के प्रमुख दल एनडीए के भाजपा के सीएम और ग्रैंड अलायंस के राजद नहीं हैं। वास्तव में, इन दोनों शिविरों में हमेशा इस बात पर रस्साकशी होती है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने शिविर में आना चाहिए और बिहार की कमान संभालनी चाहिए। दरअसल, बिहार में राजनीतिक समीकरण ऐसा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार बनती है। यह चमत्कार है कि जिस जाति से वे आते हैं, उसकी आबादी बिहार में मुश्किल से 4 प्रतिशत है। आखिर क्या कारण है कि वे बिहार की राजनीति को संतुलित करते हैं।

2015 में नीतीश कुमार की जेडीयू ने लालू यादव की आरजेडी के साथ चुनाव लड़ा। इसमें भाजपा 24.42 प्रतिशत मतों के साथ केवल 53 सीटें ही जीत सकी। राष्ट्रीय जनता दल 80 सीटों वाली एक बड़ी पार्टी थी, और जनता दल यूनाइटेड को 71 सीटें मिली थीं। यानी सत्ता की कमान नीतीश कुमार के हाथों में रही। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनावों में, जेडीयू ने एक बार फिर बीजेपी के साथ चुनाव लड़ा, जिसने एनडीए के लिए शानदार जीत हासिल की। इस चुनाव में बिहार की लोकसभा की 40 में से 39 सीटों पर राजग का कब्जा हो गया। एनडीए को 53.3 प्रतिशत वोट मिले, जबकि भाजपा को अकेले 23.6 प्रतिशत वोट मिले।

स्थिति राजद के साथ भी है। 2015 के विस चुनाव में जब आरजेडी मुख्यमंत्री नीतीश की पार्टी जेडीयू के साथ थी, तब उन्होंने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था। यानी 80 प्रतिशत नंबर के साथ पास किया और राज्य का नंबर बन गया। ग्रैंड एलायंस ने 46 प्रतिशत वोट हासिल किए, लेकिन जदयू के बाहर होने के साथ स्थिति ऐसी हो गई कि लोकसभा चुनाव में ग्रैंड अलायंस के पांच दलों के साथ भी शून्य हो गया।

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