डेस्क: वर्षों के संघर्ष और संग्राम के बाद 15 अगस्त 1947 के दिन भारत को अंग्रेजों के शासन से आजादी मिली। देश की आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। लेकिन कई इतिहासकार व विशेषज्ञ ऐसे दावे करते हैं कि भारत के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस है।

बताया जाता है कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री भले ही जवाहरलाल नेहरु हो लेकिन भारत के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। इनका मानना है कि आजाद भारत की सरकार के दबाव में आकर इतिहास के साथ छेड़छाड़ किया गया और नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम कहीं दब कर रह गया।

इतिहासकारों पर इतिहास बदलने का आरोप

कई लोगों का मानना है कि सरकार के इशारे पर इतिहासकार देश का इतिहास लिखते थे। आजाद भारत की सरकार पर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने कुछ खास इतिहासकारों को ही मान्यता दी जिन्होंने कई महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय इतिहास से मिटा दिया। जिस वजह से नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम आजादी की लड़ाई से मिट सा गया।

नेताजी ने तिरंगा फहराकर किया था आजादी की घोषणा

1942 में रासबिहारी बोस ने जापान सरकार के साथ मिलकर आजाद हिंद फौज का गठन किया था। लेकिन जापान सरकार के साथ कुछ अनबन होने की वजह से उन्होंने इस फौज को नेताजी को सौंप दिया। 21 अक्टूबर 1943 के दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज से ही आजाद हिंद सरकार का गठन हुआ। आजाद हिंद सरकार का गठन करने के बाद दिसंबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान निकोबार में तिरंगा फहराते हुए इस बात की घोषणा कर दी कि भारत अब आजाद है। इस तरह वह इस सरकार के पहले प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री बने।

कई देशों ने इस सरकार को दी थी मान्यता

आजाद हिंद सरकार के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सरकार का गठन करने के बाद ही अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी थी। इस दौरान कुल 9 देशों की सरकार ने आजाद हिंद सरकार को मान्यता दी थी। इसमें जापान, जर्मनी, फिलीपींस, थाईलैंड आदि देशों ने इस सरकार को मान्यता दी थी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जापान की सहायता से म्यानमार के रास्ते होकर पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश कर अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध करने का फैसला लिया था।

कई कारणों से झुकना पड़ा आजाद हिंद सरकार को

जापान की मदद से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत में प्रवेश किया और अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। लेकिन ब्रिटिश सरकार के पास लड़ाकू विमान होने की वजह से आजाद हिंद फौज उनके सामने टिक नहीं पा रही थी। साथ ही अगस्त 1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने के बाद ही जापान ने घुटने टेक दिए। जर्मनी के हार मान लेने की वजह से उनसे भी समर्थन मिलना बंद हो गया। इस तरह आजाद हिंद फौज पीछे हटने के लिए मजबूर हो गई।

हार नहीं माने नेताजी

इतना सब होने के बाद भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हार बिल्कुल भी नहीं माना। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान असफल होने के बाद नेताजी भारत को आजाद कराने के लिए फिर एक बार जुट गए। इस सिलसिले में वह फिर एक बार अलग-अलग देशों की यात्रा करने लगे। लेकिन 18 अगस्त 1945 के दिन ताइवान में एक विमान हादसे में कथित तौर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य बनकर रह गई है।

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