बता दें कि 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त देने के बाद सैन्य इतिहास में ऐसा पहला मौका था जब दो भाइयों ट्रेवर कीलर और डेन्ज़िल कीलर को एक ही लड़ाई में एक जैसा विमान उड़ाते हुए वीर चक्र से सम्मानित किया गया। ट्रेवर और डेन्ज़िल इंडियन एयरफोर्स में कीलर बंधु के नाम से विख्यात थे। युद्ध के बाद एयरमार्शल अर्जन सिंह खुद कीलर बंधुओं के घर लखनऊ गए और उनके पिता को उनके बेटों के कारनामे के लिए बधाई दी थी।

पाकिस्तान के विरूद्ध युद्ध के दिन पठानकोट के नैट पायलटों को तड़के तीन बजे ही जगा दिया गया था। ब्रीफ़िंग के बाद भारत के चार मिसटियर्स विमान 1500 फ़ीट की उँचाई पर उड़ते हुए छंब की ओर बढ़े, लेकिन पाकिस्तानी रडारों के ट्रैक करते ही कुछ ही पलों में छह सेबर और दो स्टार फ़ाइटर इनके पीछे लग गए।

लेकिन पाकिस्तानी रडार यह नहीं पता लगा पाया कि भारत के 4 मिसटियर्स विमानों के पीछे 4 नैट लड़ाकू विमान भी उड़ान भर चुके थे। ये नैट लड़ाकू​ विमाप जमीन से 300 फ़ीट की ऊँचाई पर उड़ रहे थे। इन चारो नैट लड़ाकू विमानों की अगुवाई स्क्वॉड्रन लीडर ट्रेवर कीलर कर रहे थे।

कीलर ने सबसे पहले 5000 फीट की दूरी पर पाकिस्तान विमान सेबर को अपनी तरफ आते देखा। इसलिए उन्होंने अपना नैट लड़ाकू विमान सेबर के पीछे लगा। कीलर के विमान की गति इतनी तेज थी कि उन्हें सेबर के पीछे बने रहने के लिए एयर ब्रेक लगाने पड़े थे। जैसे ही सेबर इनकी फायरिंग रेंज में आया, ट्रेवर कीलर ने 200 गज़ की दूरी से अपनी 30 एमएम कैनन से सेबर के दाहिने हिस्से पर फ़ायर किया। फिर क्या था कुछ ही पलों में पाकिस्तान का पहला लड़ाकू जहाज अनियंत्रित होकर ध्वस्त हो गया। ट्रेवर कीलर को उसी दिन वीर चक्र देने की घोषणा की गई।

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