यह बात उन दिनों की है जब अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद 1993 नवंबर में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली थी। उन दिनों दिग्विजय सिंह प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष थे। दोस्तों आपको बता दें कि दिग्विजय सिंह के मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है।

राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह के मुताबिक, उन दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री बनाने के लिए सुभाष यादव के नाम को आगे बढ़ा रहे थे। लेकिन बैठक में जब सुभाष के नाम पर सहमति नहीं बनी तो अर्जुन सिंह भाषण खत्म करके बाहर चले गए। उधर माधवराव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर तैयार कर भोपाल से फोन आने का इंतजार करते रहे, और एक ऐसे शख्स को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया जो कि विधायक भी नहीं था ​बल्कि एक सांसद था।

जी हां, दोस्तों बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जब एमपी में कांग्रेस शासन लगा दिया था, इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी। इस चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव जैसे नाम शामिल थे। हैरानी की बात यह है कि बैठक में दिग्विजय सिंह को उस वक्त मुख्यमंत्री बनाया गया जब वह सांसद थे और विधानसभा चुनाव नहीं लड़े थे।

राजनीतिक विश्लेषक गौरी शंकर राजहंस के अनुसार, दिग्विजय सिंह को श्यामा चरण शुक्ल लेकर आए थे, लेकिन बैठक में हुए मतदान का डिब्बा खुला तो दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए। बताया जाता है कि माधवराव सिंधिया को रोकने के लिए दिग्विजय सिंह और अर्जुन सिंह ने स्वांग रचा था। हांलाकि इसका कोई सटीक प्रमाण ​नहीं मिलता है।

घटना कुछ इस प्रकार से हुई, माधव राव सिंधिया से कहा गया था कि जैसे ही आपको खबर दी जाएगी आप तत्काल हेलीकॉप्टर द्वारा दिल्ली से भोपाल आ जाइएगा। श्यामाचरण शुक्ल और सुभाष यादव के मुख्यमंत्री नहीं बनने पर अर्जुन सिंह अपने विधायकों का समर्थन माधवराव सिंधिया को देंगे। उस समय बैठक में बतौर केंद्रीय पर्यवेक्षक प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी मौजूद थे।

मुख्यमंत्री पद के लिए विवाद बढ़ता देख प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान करवाया था। इस मतदान में 174 में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण के पक्ष में जब कि 100 से अधिक विधायकों ने दिग्विजय सिंह के पक्ष में मतदान किया था। नतीजा आते ही कमलनाथ भवन के उस कक्ष की ओर भागे जहां एक मात्र टेलिफोन लगा था। उन्होंने वहां से दिल्ली किसी को फोन किया।

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने फोन पर प्रणब मुखर्जी से कहा कि जिसके पक्ष में ज्यादा मतदान किया गया है, उसे मुख्यमंत्री बना दिया जाए। इस नाटकीय घटनाक्रम में दिग्विजय सिंह को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया और माधवराव सिंधिया दिल्ली में बैठकर फोन आने का इंतजार ही करते रह गए।

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