दोस्तों, आपको बता दें कि महाराणा प्रताप की सेना के सेनापति हकीम खान सूर का नाम लिए बगैर हल्दी घाटी का किस्सा हमेशा अधूरा ही माना जाएगा। जी हां, हकीम खान सूर विश्व का एकमात्र ऐसे सेनापति रहे ​जो तलवार लेकर युद्ध में शामिल हुए थे और तलवार के साथ ही दफनाए गए थे। हकीम खान सूर के पहले आक्रमण में ही अकबर की विशाल सेना युद्ध मैदान से भागने के लिए मजबूर हुई थी।

आपको बता दें कि 18 जून, 1576 की सुबह अकबर और महाराणा प्रताप की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार, अकबर के सेना की कमान मानसिंह के हाथों में थी जिसमें 10 हजार घुड़सवार और हजारों पैदल सैनिक थे, वहीं महाराणा प्रताप की सेना में महज तीन हजार घुड़सवार और मुट्ठीभर पैदलसैनिक।

युद्ध के दौरान अकबर की सेना का पहला सामना हकीम खान सूर की अगुवाई वाली सैन्य टुकड़ी से हुआ था। युद्ध के दौरान 38 साल के इस अफगानी पठान ने मुगल सेना में आतंक की लहर पैदा कर दी थी। जब मुगल सेना की पहली टुकड़ी के मुखिया राजा लूणकरण ने हमला बोला तो हकीम खान सूर ने पहाड़ों से निकल अचानक हमला किया था।

यह आक्रमण इतना तीव्र था कि मुगल सैनिक घबड़ाकर करीब पांच कोस दूर तक भाग गए थे। यह केवल कोई किस्सागोई नहीं है ब​ल्कि अलबदायूंनी ने इस बात को अपनी किताब में खुद लिखा है, उस दौरान यह लेखक मुगलसेना की ओर से लड़ने के लिए हल्दीघाटी के मैदान में मौजूद था।

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