लोकसभा चुनाव 2019 : क्या भाजपा और कांग्रेस में किसी की नहीं बनेगी सरकार ?
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दोस्तों, आपको बता दें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आई है। क्या यह गिरावट कहीं मोदी सरकार के क्रियाकलापों का जनता की ओर से किए गए मूल्यांकन की स्वाभाविक परिणति तो नहीं है। ऐसे में इस सवाल का जवाब लोकसभा चुनाव 2019 में मिलने वाले जनादेश में ही ढूंढा जा सकेगा। आपको याद दिला दें कि साल 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 136 सीटें मिली थीं। जिसके चलते केंद्र में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी थी।
लोकसभा चुनाव 1996 की बात की जाए तो देश की जनता ने नरसिंह राव के मिड डे मील, पंजाब समस्या का समाधान तथा आर्थिक सुधार जैसे क्रांतिकारी उपलब्धियों को तरजीह देने के बजाय हवाला कांड, झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत काण्ड तथा लक्खुभाई पाठक केस जैसे मुद्दों को तवज्जो दी। लिहाजा लोकसभा चुनाव 1996 में कांग्रेस पार्टी 136 सीटों के साथ दूसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई।
भारतीय जनता पार्टी 161 सीटों के साथ शीर्ष पार्टी के रूप में पहली बार सियासी पटल पर उभरकर सामने आई। लेकिन यह पार्टी बहुमत के आंकड़ों 267 सीटों से काफी दूर थी। तब वाजपेयी की 13 दिन की बीजेपी सरकार बहुमत के अभाव में गिर गई थी। इसके बाद 173 सांसदों वाले संयुक्त मोर्चा को नरसिंह राव की कांग्रेस का समर्थन हासिल हुआ। इस दौरान इंद्रकुमार गुजराल और एचडी देवगौड़ा की अगुवाई में बारी-बारी से दो सरकारें केंद्र में नजर आईं।
इस लोकसभा ने पौने दो साल में ही तीन प्रधानमंत्री देखे तथा केंद्र सरकार को 4 विश्वासमत प्रस्तावों का सामना करना पड़ा। तीसरे मोर्चे की सरकार में पहले एचडी देवगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए।
जनता ने विकल्प का चुनाव किए बिना ही 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। ठीक इसी प्रकार जनता में राफेल, नीरव मोदी तथा पीएम मोदी द्वारा मूर्तियों पर सरकारी पैसे की बर्बादी का मुद्दा हावी होते ही 1996 लोकसभा चुनाव जैसे नजीते सामने आ सकते हैं। बावजूद इसके जनता का इकबाल कांग्रेस के प्रति कायम होता नहीं दिख रहा हैै। अब सवाल यह उठता है कि जनादेश की सूरत कैसी हो सकती है। यह तय है कि लोकसभा चुनाव 2019 राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी के बीच है। इस चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।