दोस्तों, आपको बता दें कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई। इसके बाद 1993 में राम मंदिर लहर के बावजूद यूपी विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन ने बीजेपी को मात्र 177 सीटों पर ही सीमित कर दिया। 1996 में फिर विधानसभा चुनाव हुए और कुछ दिनों की जोड़-तोड़ के बाद बसपा-भाजपा सरकार बनी।

बता दें कि 1999 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी 57 सीटों से 28 सीटों पर आ गई। ऐसे में पार्टी ने इस हार का ठीकरा कल्याण सिंह के सिर फोड़ा। बदले में कल्याण को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया। उन दिनों राजनीति से दूर हो चुके रामप्रकाश गुप्ता को यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया गया, लेकिन इस भुलक्कड़ सीएम को 11 महीने बाद ही अपने पद से हाथ धोना पड़ा। 8 अक्टूबर 2000 को राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए। मुख्यमंत्री बने रहने के दौरान राजनाथ सिंह इतनी घोषणाएं करने लगे कि लोग इन्हें घोषणानाथ कहने लगे।

2002 में यूपी में एक बार फिर से विधानसभा चुनाव हुए लेकिन भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। मायावती मुख्यमंत्री बनी लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के दुलारे राजनाथ सिंह को अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में कृषि मंत्री बना दिया गया।

2004 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार गिर गई तब उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी बीजेपी अध्यक्ष बना दिए गए और राजनाथ सिंह को भाजपा का महासचिव बना दिया गया।

इसी बीच वैचारिक हादसे ने नया मोड़ ले लिया, दरअसल लालकृष्ण आडवाणी 2005 में पाकिस्तान गए और वहां भावुक होकर उन्होंने जिन्ना की तारीफ कर दी। फिर क्या था इस बात पर संघ भड़क गया और पाकिस्तान से लौटते ही आडवाणी को अध्यक्ष पद से हटना पड़ा। इसके बाद संघ के परम भक्त राजनाथ सिंह को भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन लोकसभा चुनाव-2009 में राजनाथ की जगह नितिन गडकरी को पार्टी का अध्यक्ष बना दिया गया।

बीजेपी के संगठन मंत्री रहे गोविंदाचार्य के मुताबिक, राजनाथ सिंह जिस पद पर पहुंचते हैं, उस पर ध्यान न देकर अगले लक्ष्य पर नजरें जमा लेते हैं। 2009 के बाद केंद्र में यूपीए की सरकार बनी और देश की राजनीति बदलने लगी। 2-जी और कॉमनवेल्थ के साथ कोयले घोटाले में फंसी कांग्रेस सरकार पर अरविंद केजरीवाल, अन्ना हजारे और विनोद राय ने हमला बोल दिया था।

अब देश को एक काबिल प्रधानमंत्री तथा भाजपा को एक काबिल अध्यक्ष की जरूरत थी। इसलिए लोकसभा चुनाव-2014 से ठीक पहले पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी फिर से राजनाथ सिंह को मिली। उन्होंने नरेंद्र मोदी को जमकर सपोर्ट किया। फायदा यह हुआ कि चुनाव बाद नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनाए गए और राजनाथ सिंह को गृह मंत्रालय मिला। लेकिन इसमें ज्यादा सियासी घाटा लालकृष्ण आडवाणी को ही उठाना पड़ा। भाजपा के इन दिग्गज नेताओं के बीच आडवाणी अप्रासंगिक होते चले गए।

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