कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष पद का चुनाव कराकर संघर्ष पथ पर आगे बढ़ रही है लेकिन कांग्रेस की चुनावी सियासत को ट्रैक पर लाने के लिए नए अध्यक्ष के सामने बहुत सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में बुधवार को मतगणना के बाद नए कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित होना तय माने जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए अपने नेतृत्व के प्रति विश्वास का भाव पैदा किए बिना पार्टी संगठन की राजनीतिक क्षमता में उम्मीदों का पंख लगाना आसान नहीं होगा। चुनाव से पहले नेतृत्व को लेकर लंबे अर्से तक रही दुविधा ने संगठन और नेताओं में जड़ता और नाउम्मीदी की स्थिति पैदा की है। इस दोहरी चुनौती को तोड़े बिना कांग्रेस को संकट से उबारने की गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के संगठनात्मक ढांचे को हवा-हवाई नेताओं की फौज से छुटकारा दिलाना अहम होगा।

कांग्रेस के मौजूदा ढांचे में शीर्ष नेतृत्व से जुड़ी सबसे बड़ी शिकायत संवादहीनता की रही है। 2016 में पार्टी छोड़ने वाले हिमंत बिस्व सरमा हों या हाल में बाहर गए दिग्गज गुलाम नबी आजाद लगभग सभी ने इसे गंभीर समस्या बताने से परहेज नहीं किया। संवाद की यह प्रक्रिया पार्टी के अहम फैसलों को समावेशी ही नहीं सर्वस्वीकार्य बनाने का रास्ता बनाएगी और सामूहिक नेतृत्व के अभाव की शिकायतों की गुंजाइश भी बंद होगी।

प्रदेश अध्यक्षों को निर्णय लेने की छूट देनी होगी
कांग्रेस की चुनावी पराजय के लंबे सिलसिले की सबसे बड़ी वजह राज्यों में पार्टी का खस्ताहाल ढांचा और लचर व्यवस्था है। दक्षिणी राज्यों और राजस्थान व मध्य प्रदेश के कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा, गुजरात से लेकर गोवा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में पुरानी पीढ़ी के दिग्गज नेताओं की फौज सियासी रूप से अप्रासंगिक हो चुकी है। बीते सात-आठ सालों में छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के मजबूत नेता के रूप में उभरने के एक नाम के अलावा पार्टी के पास कोई दूसरा उदाहरण नहीं है। ऐसे में नए अध्यक्ष के लिए राज्यों में नई पीढ़ी के भीड़ जुटाऊ लोकप्रिय नेताओं की फौज तैयार करना इसलिए भी अहम है कि राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की वापसी का रास्ता राज्यों में चमकदार प्रदर्शन से ही निकलेगा।


इसमें अहम होगा कि पार्टी में गहरी जड़ें जमा चुकी हाईकमान आधारित कार्य संस्कृति में लचीलापन लाया जाए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों के निर्णय लेने का दायरा और अधिकार बढ़ाते हुए उनकी सीधी जवाबदेही भी इसी अनुपात में तय की जाए।पार्टी में निष्क्रियता के भाव को दूर करने के लिए राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से कश्मीर तक की भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है। कांग्रेस के नए अध्यक्ष बदलावों के साथ संगठन की जड़ता तोड़ने का यह क्रम आगे बढ़ाते हैं तो फिर नेताओं-कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के भविष्य को लेकर उम्मीद जगेगी।

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