7 सितंबर 1960 की है, जब फ़िरोज़ गांधी को दिल का दौरा पड़ा था। तब इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से सीधे वेलिंगटन अस्पताल पहुंची, जहां उनका इलाज चल रहा था। इंदिरा गांधी की सहायक ऊषा भगत वेलिंगटन अस्पताल में पहले से ही मौजूद थीं। उन्होंने इंदिरा गांधी को बताया कि पूरी रात फिरोज जब भी होश में आते थे, तब यही पूछते थे कि इंदु कहां है? बता दें कि फिरोज गांधी के अंतिम समय में इंदिरा उनके बग़ल में ही मौजूद थीं।

8 सितंबर की सुबह फिरोज गांधी को कुछ समय के लिए होश आया, लेकिन कुछ देर बाद वह फिर बेहोश हो गए और 7 बज कर 45 मिनट पर उन्होंने आख़िरी सांस ली। इंदिरा की जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ़्रैंक के अनुसार, 9 सितंबर को तिरंगे में लिपटे फ़िरोज़ के पार्थिव शरीर के साथ राजीव, संजय, इंदिरा और फ़िरोज़ गांधी की बहन तहमीना भी एक ट्रक पर सवार हुईं। निगमबोध घाट पर 16 साल के राजीव गांधी ने फ़िरोज़ की चिता को आग लगाई। इस प्रकार फिरोज गांधी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से किया गया।

अंतिम संस्कार के ठीक 2 दिन बाद फिरोज गांधी के अस्थि कलश को एक ट्रेन से इलाहाबाद ले जाया गया। जहां उसका एक भाग संगम में प्रवाहित किया गया तो दूसरा भाग इलाहाबाद की पारसी क़ब्रगाह में दफ़ना दिया गया।

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