आपको बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में शिवपाल यादव फिरोजाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं शिवपाल यादव ने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव के खिलाफ अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का उम्मीदवार को हटाकर इस चुनाव में नए विवादों का जन्म दिया है। यूपी की सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि लोकसभा चुनाव 2014 में कन्नौज से डिंपल यादव बहुत ही कम वोटों के अंतर चुनाव जीती थीं। ऐसे में शिवपाल यादव ने कन्नौज में अपना उम्मीदवार न उतारकर जिस तरह से डिंपल यादव का रास्ता साफ किया है, वो एक प्रकार से अखिलेश यादव पर 'अहसान' है। इस प्रकार कहीं उसका बदला फिरोजाबाद में भाई अक्षय की कुर्बानी से न चुकाया जाए!

एक प्रकार से शिवपाल यादव ने की मदद...

आपको जानकारी के लिए बता दें कि कन्नौज संसदीय सीट से शिवपाल की प्रसपा ने सुनील सिंह राठौड़ को प्रत्याशी बनाया था। लेकिन नामांकन की अंतिम तारीख पर सुनील सिंह पर्चा भरने नहीं पहुंचे। इसके बाद अब कन्नौज में मुकाबल सीधे भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक और महागठबंधन उम्मीदवार डिंपल यादव के बीच रह गया है। हांलाकि कन्नौज में डिंपल यादव की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही है, लेकिन साल 2014 में डिंपल जितने कम वोटों से जीती थीं, उसे देखते हुए यही कहा जा रहा था कि शिवपाल की पार्टी का कैंडिडेट बड़ा नुकसान पहुंचाने की स्थिति में आ सकता है।

कन्नौज में डर क्या है?

साल 2009 में अखिलेश यादव ने कन्नौज तथा फिरोजाबाद दोनों जगहों से चुनाव जीता था। अखिलेश यादव ने फिरोजाबाद की सीट छोड़ दी, इसके बाद उपचुनाव में फिरोजाबाद से डिंपल यादव चुनाव मैदान में उतरीं। इस चुनाव में डिंपल यादव कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर से हार गयीं। डिंपल की इस हार को अखिलेश यादव दोहराना नहीं चाहते हैं। साल 2014 में डिंपल यादव को भाजपा के सुब्रत पाठक से कड़ी टक्कर मिली थी। लोकसभा चुनाव 2014 में डिंपल यादव मात्र 19 हजार 907 वोटों से ही चुनाव जीत सकी थीं। इस बार के चुनाव में शिवपाल यादव की पार्टी के चुनाव मैदान में आने से सपा के वोटों के बंटने का खतरा था। ऐसे में अखिलेश यादव डिंपल यादव की सीट पर किसी भी तरह से रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।
चूंकि शिवपाल यादव की सपा के पुराने समर्थकों में लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। ऐसे में अखिलेश यादव अपने चाचा शिवपाल को इग्नोर नहीं करना चाहते हैं।

फिरोजाबाद में शिवपाल भी फंसते दिख रहे हैं

बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 में शिवपाल सिंह यादव फिरोजाबाद सीट पर सपा के महासचिव रोमगोपाल यादव के बेटे और अखिलेश के चचेरे भाई अक्षय कुमार को चुनौती दे रहे हैं। फिरोजाबाद सीट पर यादव, जाटव और मुस्लिम वोटरों का बाहुल्य है, ऐसे में यहां चाचा-भतीजा आमने-सामने हैं। फिरोजाबाद में 4.31 लाख यादव वोटर, 2.10 लाख जाटव, 1.65 लाख ठाकुर, 1.47 लाख ब्राह्मण, 1.21 लाख लोधी मतदाता और 1.56 लाख मुस्लिम वोटर्स हैं।
सपा से निष्कासित फिरोजाबाद के सिरसागंज से विधायक हरिओम यादव भी फिरोजाबाद में शिवपाल यादव के लिए वोट मांग रहे हैं।
बता दें कि फिरोजाबाद में 5 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें 4 पर भाजपा विधायक हैं तथा एक सीट हरिओम यादव जीतने में सफल रहे। चूंकि अक्षय को मायावती का भी समर्थन है। इसलिए यदि शिवपाल यादव चुनाव हार जाते हैं, तो उनके राजनीतिक करियर पर प्रश्न चिन्ह लग जाएगा। हालांकि सपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि शिवपाल यादव ज्यादा नुकसान नहीं कर पाएंगे।

कोई डील तो नहीं हुई है?

इस बारे में अक्षय यादव का कहना है कि ये सब अफवाह है। फिरोजाबाद और कन्नौज सीट पर महागठबंधन बड़े अंतर से चुनाव जीत रहा है। उधर बीजेपी ने फिरोजाबाद से डॉ. चंद्रसेन जादौन को टिकट देकर सभी को चौका दिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी ने फिरोजाबाद में कमजोर उम्मीदवार उतारकर शिवपाल को मजबूत करने का काम किया है। फिरोजाबाद में प्रसपा के कार्यकर्ताओं का कहना है कि शिवपाल यादव 2 लाख से ज्यादा मतों से चुनाव जीतने जा रहे हैं। सपा और भाजपा प्रत्याशी की बुरी हालत होगी।

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