इंटरनेट डेस्क। बात 2 अक्टूबर 1956 की है, गांधी जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अहमदाबाद में आयोजित एक राजनीतिक सभा को संबोधित करने पहुंचे थे। यह राजनीतिक सभा उम्मीद से ज्यादा सियासत की लड़ाई में तब्दील हो गई। जानकारी के लिए बता दें कि उसी दिन एक अन्य राजनीतिक सभा का आयोजन किया गया था। जी हां, महागुजरात आंदोलन के अगुवा इंदु लाल याग्निक इस सभा के मुख्य वक्ता था। दरअसल गुजरात के लोग इंदु लाल याग्निक को प्यार से इंदु चाचा के नाम से बुलाते थे। ऐसे में ये दोनों राजनीतिक सभाएं चाचा बनाम चाचा के मुकाबले में बदल गई।

लोग बताते हैं कि उस दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू का करिश्मा फेल हो गया था। दरअसल पं. नेहरू को देखने के लिए जुटी भीड़ कुछ ही देर बाद इंदु लाल याग्निक की सभा में पहुंच गई थी। यह थी महागुजरात आंदोलन की धमक जिसे पं. जवाहर लाल नेहरू दरकिनार नहीं कर सके।

निर्भिक विचार रखने वाले इंदुलाल याज्ञिक के चलते ही अलग गुजरात का निर्माण हो सका। 1958-1959 की बात है गुजरात राज्य की मांग को लेकर इंदुलाल याज्ञिक आंदोलन कर रहे थे। लेकिन सरकार ने इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की। लेकिन याज्ञिक की लोकप्रियता काम आई और उन्होंने अहमदाबाद में जनता कर्फ़्यू लगवा दिया। ठीक उसी दिन जवाहरलाल नेहरू और मोरारजी देसाई की सभाएं थी, लेकिन कोई भी अपने घरों से नहीं निकला। आखिरकार 1960 में अलग से गुजरात की मांग मान ली गई।

गौरतलब है कि मुंबई प्रेसीडेंसी से अलग होकर नए गुजरात राज्य का निर्माण किया गया। महात्मा गांधी के निजी डॉक्टर जीवराज मेहता को इस नए राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया।

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