दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि इसरो ने गुरुवार को श्रीहरिकोटा से 8 देशों के 30 उपग्रहों को एक साथ लॉन्च कर एक नया इतिहास रच दिया। बता दें कि इसरो के नाम ऐसी कई बड़ी उपलब्धियां है। कभी आपने सोचा है कि इसरो को अंतरिक्ष में भेजने के पीछे कुछ महिला वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान है।

दोस्तों, साल 2014 की वह बात याद दिला दें जब इसरो ने पहली बार में ही अपना उपग्रह मंगल की कक्षा में स्थापित करके दुनियाभर में तहलका मचा दिया था। उन दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर खूब वायरल हुई थी।

बता दें कि इसरो में काम करने वाली यह महिला वैज्ञानिक ऋतु करीधल, अनुराधा टीके और नंदिनी हरिनाथ हैं। मंगल अभियान में यह महिलाएं रॉकेट छोड़े जाते समय कंट्रोल रूम में थीं और पल-पल होने वाली घटना पर नज़र रखे हुए थीं। आइए जानें, इन महिला वैज्ञानिकों के बारे में।

ऋतु करीधल
लखनऊ में पली-बढ़ी करीधल को बचपन से ही इस बात की जिज्ञासा थी कि चांद का आकार कैसे घटता बढ़ता रहता है। चांद के काले धब्बों के पीछे क्या था। भौतिकी और गणित की छात्रा करीधल अखबारों में नासा और अंतिरक्ष की खबरें खोज कर पढ़ा करती थीं। स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने इसरो में नौकरी के लिए आवेदन किया और अब अंतरिक्ष वैज्ञानिक हैं।

नंदिनी हरिनाथ
नंदिनी हरिनाथ कहती हैं कि मेरे पिता इंजीनियर और मां गणित की शिक्षक हैं। पिताजी को भौतिकी से बेहद लगाव है, इसलिए हम सब एक साथ बैठ कर टेलीविज़न पर आने वाला साइंस फ़िक्शन स्टार ट्रेक देखा करते थे। मैंने पहले अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन पहली बार जब मैंने इसरो के लिए आवेदन किया तो चयनित हो गई। फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मंगल अभियान से जुड़ना और उसकी सफलता मेरे जीवन का सबसे अहम हिस्सा था। नंदिनी हरिनाथ कहती हैं कि जब रॉकेट छोड़ने का समय नज़दीक आया, तब हम लोगों को 12 से 14 घंटे तक काम करना पड़ा।

अनुराधा टीके
इसरो की वरिष्ठ वैज्ञानिक अनुराधा टीके संचार उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ने की विशेषज्ञ हैं। वह अंतरिक्ष के बारे में तभी सोचने लगी थीं, जब उनकी उम्र महज 9 साल थी। देश की महिला वैज्ञानिकों के लिए रोल मॉडल मानी जाती हैं अनुराधा टीके। वे पिछले 34 साल से इसरो में हैं।

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