इंटरनेट डेस्क। संविधान मेें ‘गठबंधन’ सरकार की परिभाषा तक पढ़ने को नहीं मिलती है। फिर गठबंधन सरकारों का उदय और अस्त क्यों होने लगा है?

विचित्र एवं हास्यास्पद स्थिति यह है कि कर्नाटक राज्य में कांग्रेस और जद (स) में चुनाव उपरान्त गठबंधन हुआ है। चुनाव पूर्व तो उनमें भारी टक्कर रही है-क्योंकि विचारधाराएं भिन्न-भिन्न रही है।

कांग्रेस ने अधिक प्रत्याशी जीतकर भी कम प्रत्याशी वाली जद (स) को समर्थन देकर मुख्यमंत्री जद (स) का बनाए जाने की पूर्व घोषणा कर दी और पीछे के दरवाजे से स्वयं ने सत्ता में पुन: प्रवेश कर दिखलाया। यदि कांग्रेस ने कर्नाटक में अपनी पांच साल पुरानी सत्ता खोदी थी तो उसे सत्ता से बाहर रहकर विपक्ष में बैठना चाहिए था और राजनीतिक नैतिकता का परिचय देना चाहिए था।

किन्तु कांग्रेस ने ही आगे बढक़र राजनीतिक सत्ता की भूख को शांत करना चाहा और बिना जद (स) निमंत्रण के ही स्वैच्छिक अतिथि बनकर जद (स) से हॉनिमून मना लिया। गठबंधन की सबसे बड़ी हानि यह है कि गठबंधन का स्वभाव (नेचर) देशभक्ति का न होकर स्वार्थ-समझौता का होता है। परस्पर शर्ते तय होती है।

न्यूतनम दिखावटी कार्यक्रम घोषित होता है। इस तरह मतदाताओं के साथ खुलेआम विश्वासाघात किया जाता है। आम जनता को उक्त आकस्मिक स्थिति व दृश्य से भारी हताशा व निराशा होती है। 1977 में भारत में जनता पार्टी नामक गठबंधन भी इमरजेंसी उपरान्त बन पाया था जो ढ़ाई साल चलकर ही धाराशायी हो गया था।

हमने विगत दस वर्ष अर्थात् 2014 तक भारत में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठबंधन सरकार का शासन देखा। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होते हुए भी गठबंधन की मजबूरियों की शिकार हो गई। केबिनेट स्तर पर रचित घोटालों के कारण कांग्रेस को सत्ता से बाहर (2014) होना पड़ा और भाजपा को प्रचार बहुमत प्राप्त करना पड़ा। जबकि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की नैतिकता व शालीनता में कोई कमी नहीं थी किन्तु गठबंधन की विवशता ने उन्हें ‘‘मौन’’ धारण कराए रखा और सोनिया गांधी को अध्यक्ष पद (यूपीए) ने ‘जकड़े’ रखा।

कांग्रेस का इतिहास व गरिमा भारी क्षतिग्रस्त हुई। ‘बद अच्छा बदनाम बुरा’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई। जम्मू-कश्मीर में जो गठबंधन पीडीपी और भाजपा के मध्य चल रहा था, वह टूट गया क्योंकि दोनों पार्टियों की विचारधाराएं भिन्न-भिन्न रही है। ‘‘रोम जलता रहा नीरो बांसुरी बजाता रहा’’ वाली कहावत चरितार्थ हुई। बिहार में गठबंधन टूटने की कगार पर पहुंच गया किन्तु नीतीश (मुख्यमंत्री) ने भाजपा से हाथ मिला लिया और सरकार गिरने से बचा ली। वर्तमान में भारत को अनेक ज्वलंत समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। उसमें सबसे अधिक भयावह समस्या जम्मू-कश्मीर में बोर्डर पर आतंकियों का प्रवेश है। युद्ध विराम समझौता (पाकिस्तान, भारत) अर्थात् सीजफायर तोड़ा जा रहा है। जम्मू कश्मीर के नागरिकों एवं सुरक्षा सैन्य कैंपों तक को गोलियों का शिकार बनाया जा रहा है। यह कैसी विडम्बना है?

भारत में किसान सर्वाधिक पीड़ा में है। उसे ऋणग्रस्तता ने आत्महत्याएं तक पहुंचा दिया है। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने ऋण माफी के लिए कदम तो उठा लिए किन्तु नीति आयोग में कृषि व किसान के लिए अनुकूल नई नीति का निर्माण अभीष्ट है। भारत में शिक्षा प्रणाली दिग्भ्रमित है। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली विफल हो चुकी है। देश की प्राचीन शिक्षा प्रणाली आउटडेटेट है।

अंग्रेजी माध्यम का बोलबाला है। रोजगार परक शिक्षा प्रणाली पर निरंतर प्रयोग हो रहे हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली सर्वाधिक खर्चीली होते हुए भी शिक्षित बेकारी का समाधान नहीं निकाल पाई है। विद्यार्थी और अभिभावक दोनों ही दिशाहीन हो रहे हैं। सर्वांगीण, सर्वोचित, सुपरिणाम देने वाली नई शिक्षा प्रणाली व पाठ्यक्रम की जरूरत है तो शिक्षण संस्थानों की लूट से भी भारतीय यूथ को बचाना है। ऐसी स्थिति में नीति आयोग ही सारगर्भित प्रणाली के लिए शिक्षा नीति निर्धारित कर पाएगा ऐसी उम्मीद है।

भारत में एकता व अखण्डता के लिए जीएसटी टैक्स प्रणाली लागू हो चुकी है। केंद्र एवं राज्यों में इसका प्रयोग हो रहा है, किन्तु इसका और अधिक विस्तार हो सके इसके लिए प्रणाली का सरलीकरण शेष है, जो अतिशीघ्र होना चाहिए। भारत में उदारीकरण की अर्थव्यवस्था में प्रगति व सुधार हो रहा है।

जीडीपी भी सही हो पाया है, किन्तु जो औद्योगिक बेकारी (दो नवंबर का व्यापार बंद होने से) बढ़ी है उसे रोजगार में परिवर्तित किया जाना चाहिए। सरकार की कौशल विकास योजना सामने आई है। जिसका विस्तार और होना चाहिए। भारत में राज्य सरकारों द्वारा कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने की जरूरत है, सडक़ दुर्घटनाओं पर नियंत्रण की जरूरत है, समाज को अपराधियों से बचाने की जरूरत है। देश हर हालत में शोषण मुक्त होना चाहिए। आर्थिक आरक्षण भी विचाराधीन है।

वस्तुत: हमें एक पार्टी बहुमत सरकार के अनेक लाभ मिल पा रहे हैं- जो इस प्रकार हो सकते हैं-

1. अभी तक बहुमत वाली एक पार्टी (भाजपा) सरकार में एक भी केबिनेट मंत्री पर भ्रष्टाचार का लांछन नहीं लगा है। अत: सरकार की नैतिकता मूल्यवान है, जो पिछली गठबंधन सरकार (कांग्रेस) में क्षतिग्रस्त हो गई थी।

2. एक पार्टी बहुमत की सरकार होने से सरकार में स्थायित्व व प्रभावशीलता बनी रहती है। सरकार मध्य में ही गिरने या टूटने का भय नहीं रहता है।

3. विश्व में एक पार्टी स्थायी गर्वनमेंट के प्रधानमंत्री का सम्मान व सत्कार हृदय से किया जाता है। इसके अतिरिक्त द्विपक्षीय समझौते भी सादर सम्पन्न हो पाते हैं।

4. एक पार्टी के प्रधानमंत्री अपना राष्ट्रपति को विश्व मंच पर सुना जाता है और उनके द्वारा प्रेषित सुझावों को अंगीकार किया जाता है।

5. केंद्र में एक पार्टी की सरकार होने से राज्यों में भी उसी पार्टी की सरकार बनने की संभावनाएं रहती हैं,

यदि लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ करा लिए जाते हैं तो यह संभावना हकीकत में परिणीत भी हो सकती है।

6. देश में नीतियां योजनाएं एवं समझौते गतिशील रह पाते हैं। कार्य सम्पादन में विलंब नहीं होती है।

7. देश की सेना पर सरकार का नियंत्रण बना रहता है। सेना व सरकार में सहसंबंध भी परवान चढ़ पाते हैं।

8. देश में ‘विकास’ निरंतर आगे बढ़ पाता है।

9. नए-नए अनुसंधान जन्म ले पाते हैं। सार्वजनिक गतिविधियां बढ़ पाती है। जनसहभागिता भी बढ़ पाती है क्योंकि पार्टी कार्यकर्ताओं को तरजीह मिल पाती है।

सारांशत: गठबंधन सरकारें सत्ता प्रवेश की भूखी होती है तथा देश की एकता, अखण्डता व राष्ट्रीयता का क्षरण कर पाती है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना भी मुश्किल होता है। सांसदों एवं विधायकों में अहम (ईगो) अधिक एवं सेवा कम होना स्वाभाविक होता है। जवाबदेही पर प्रश्न चिन्ह लगा रहता है।

अत: विशाल भारत को गठबंधन सत्ता से दूरी बनाकर ही चलना चाहिए। देश की गरिमा व एकता में चार चांद लगने चाहिए। वस्तुत: एक पार्टी बहुमत सरकार ही देश में अच्छे दिन ला सकती है और जनता का विश्वास व भरोसा बनाए रख सकती है।

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