इतिहास की पुस्तकों में राजकुमार वीरमदेव की प्रेम कहानी का बहुत कम उल्लेख मिलता है। लेकिन जनश्रुतियों के मुताबिक, अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फिरोजा ने वीरमदेव के लिए अपनी जान दे दी।

यह कहानी उन दिनों की है, जब अलाउद्दीन खिलजी की शाही सेना गुजरात के सोमनाथ मंदिर को खंडित कर, उस शिवलिंग को लेकर दिल्ली लौट रही थी। तभी जालौर के शासक कान्हड़ देव चौहान ने उस शिवलिंग को प्राप्त करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी की सेना पर ​आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध में खिलजी की सेना हार गई।

जैसे अलाउद्दीन खिलजी को यह बात पता चली उसने जालौर के मुख्य योद्धा वीरमदेव को दिल्ली बुलाया था। कहते हैं कि दिल्ली दरबार में वीरमदेव को देखते ही अलाउद्दीन की बेटी फिरोजा को पहली नजर में ही उससे प्यार हो गया था।

इसके बाद अपनी बेटी के रिश्ते के लिए वीरमदेव के सामने अलाउद्दीन खिलजी ने प्रस्ताव रखा था। वक्त की नजाकत को देखते हुए वीरमदेव ने इस रिश्ते पर विचार करने को कहा था। लेकिन दिल्ली से लौटते ही वीरमदेव ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया।

अलाउद्दीन खिलजी को जैसे ही पता चला कि वीरमदेव ने फिरोजा के साथ शादी करने से मना कर दिया है, उसने जालौर पर हमला कर दिया था। अलाउद्दीन खिलजी वीरमदेव को कैद करना चाहता था। पांच युद्धों में हार के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने 1368 में बहुत बड़ी सेना जालौर भेज दी। कहते हैं, इस आखिरी युद्ध में वीरमदेव के पिता कान्हड़ देव चौहान और वीरमदेव दोनों ही वीरगति को प्राप्त हुए थे।

अलाउद्दीन खिलजी की बेटी फिरोजा को जैसे ही वीरमदेव के मृत्यु का समाचार मिला, उसने भी दिल्ली के यमुना में कूदकर अपनी जान दे दी थी। यह प्रेम कहानी दर्शाती है कि प्रेम का कोई भी धर्म और मजहब नहीं होता है। इसलिए प्रेम को हिन्दू-मुस्लिम नजरिए से देखना कहीं से भी तर्क संगत नहीं है।

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