देश के प्रखर समाजवादी नेता मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का मंगलवार सुबह 7 बजे निधन हो गया। 88 वर्षीय जॉर्ज फर्नांडिस पिछले कुछ दिनों से स्वाइन फ्लू से पीड़ित थे और दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। अपने लंबे राजनीतिक करियर में वह समता पार्टी के संस्थापक होने के साथ-साथ रक्षा व उद्योग मंत्री भी रहे। उनके निधन पर पीएम मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद सहित देश की बड़ी हस्तियों ने दुख व्यक्त किया है।

इस स्टोरी में हम आपको जॉर्ज फर्नांडिस नामक उस फायरब्रांड नेता के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत कांग्रेस के केंद्रीय मंत्री को करारी शिकस्त देकर की थी। यह बात फरवरी 1967 की है, जब देश में लोकसभा चुनाव होने थे। बम्बई दक्षिण की सीट से कांग्रेस के धाकड़ नेता सदाशिव कानोजी पाटिल चुनाव मैदान में उतर चुके थे। उस जमाने में सदाशिव कानोजी पाटिल का सियासी रूतबा बाल ठाकरे जैसा हुआ करता था।

सदाशिव कानोजी पाटिल को बम्बई का बेताज बादशाह भी कहा जाता था। बम्बई के 4 बार मेयर रह चुके सदाशिव कानोजी पाटिल पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री सरकार में केंद्रीय मंत्री रह चुके थे, ऐसे में उनकी जीत लगभग पक्की मानी जा रही थी। लेकिन राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के एक 37 वर्षीय युवा नेता ने कांग्रेस के इस ताकतवर नेता को धूल चटा दी। तभी से इस नेता को नया नाम मिला जॉर्ज दी जाइंट किलर।

एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में जॉर्ज फर्नांडिस ने कहा था कि 16 साल की उम्र में उन्हें कैथोलिक पादरी बनने के लिए बैंगलोर की सेमिनरी में भेजा गया। यहां वह 2 साल तक रहे, लेकिन जैसे ही मुल्क आजाद हुआ वह इस धार्मिक संस्था से भाग निकले। जार्ज ने इंटरव्यू में बताया था कि सेमिनरी से उनका मन उचट गया था। उन्होंने देखा कि पादरी की कथनी और करनी में बहुत फर्क है। यह सिर्फ एक धर्म के साथ नहीं, बल्कि दुनिया के तमाम धर्मों के साथ ऐसा देखा जा सकता है।

1949 में वह भागकर बम्बई आ गए और कुछ दिनों तक खुद को बम्बई की सड़कों पर काम की तलाश में भटकते पाया। वह रात को चौपाटी किनारे बेंच पर सो जाते और पुलिसवाले उन्हें अक्सर वहां से खदेड़ देते। कुछ दूर जाकर वह खाली बेंच पर फिर सो जाते। यही क्रम हर रोज दोहराया जाता। आखिरकार 19 साल के जार्ज फर्नांडिस को प्रूफ रीडर का काम मिल गया और उन्हें इस झंझट से मुक्ति मिली। बंबई में रहने के दौरान ही वह समाजवादी मजदूर आंदोलन और डॉक्टर राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। 60 के दशक तक जार्ज ने अपनी पहचान बॉम्बे की टैक्सी यूनियन के सबसे बड़े नेता के रूप में कायम कर ली।

नवंबर 1973 में जार्ज साहब आल इंडिया रेलवे मैन्स फेडरेशन के अध्यक्ष बने। ऐसे में निर्णय हुआ कि रेल कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी के लिए हड़ताल की जाए। 8 मई 1974 को बॉम्बे में हड़ताल शुरू हुई, देखते ही देखते जार्ज की अगुवाई में इस रेल हड़ताल से टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी जुड़ गए। यह रेल हड़ताल तीन सप्ताह तक चला था। 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में डाल दिया गया था। हांलाकि बिना कोई कारण बताए कोऑर्डिनेशन कमिटी ने हड़ताल वापिस लेने की घोषणा कर दी। इस प्रकार देश की सबसे सफल रेल हड़ताल का अंत हुआ।

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