जनरल एस के सिन्हा की आत्मकथा अ सोलजर रिमेंबर्स के अनुसार, इंडियन आर्मी चीफ मानेक शॉ के पास लाल रंग की एक मोटरसाइकिल थी, जो पाकिस्तान की सेना के मुहम्मद याहया ख़ान को बहुत पसंद थी। 1947 में जब याहया पाकिस्तान जाने लगे तो मानेकशॉ ने 1000 रुपए में अपनी मोटरसाइकिल उन्हें बेच दी।

बता दें कि याहया ने जनरल मानिक शॉ से वादा किया था कि वह पाकिस्तान जा कर पैसा भेजेंगे, लेकिन वहां जा कर वो इसके बारे में भूल गए। संयोगवश साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हो गया। उस वक्त पाकिस्तानी सेना के जनरल याहया ख़ान ही थे।

1971 के युद्ध में भारत से करारी शिकस्त के बाद जनरल मानिक शॉ ने मजाक में कहा था- मैंने याहया ख़ां के चेक का 24 सालों तक इंतज़ार किया लेकिन वह कभी नहीं आया, आखिर में उन्होंने 1947 में लिया गया उधार अपना आधा देश दे कर चुकाया। जानकारी के लिए बता दें कि 1971 के युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने वाला इलाका ही बांग्ला देश बना था।

पाकिस्तान में जनरल याहया ख़ान को लेडीज़ मैन कहा जाता था, कई महिलाओं संग उनकी दोस्ती थी। उनमें दो बड़ी खराबियाँ थीं। एक तो बेतहाशा शराब पीते थे और दूसरे औरतों के मामले में भी वो कमज़ोर थे।

1971 युद्ध का वह किस्सा
याहया के बग़ल में बैठे जनरल हामिद उनकी जीप चला रहे थे, तभी उनके रास्ते में एक गिद्ध बैठा हुआ नजर आया। हामिद के हॉर्न बजाने पर भी गिद्ध पर कुछ असर नहीं हुआ। याहया ने भी जीप से कूद कर अपने बेंत से उसे भगाने की कोशिश की, लेकिन गिद्ध टस से मस नहीं हुआ। इस के बाद वहां मौजूद माली ने बड़ी मुश्किल से अपने फावड़े से गिद्ध को याहया के रास्ते से हटाया था।

याहया ख़ान के एडीसी अर्शद समी ख़ान अपनी आत्मकथा थ्री प्रेसिडेंट्स एंड एन एड में लिखा है कि 3 दिसंबर, 1971 की दोपहर का वो दृश्य बार-बार मेरी आँखों के सामने कौंधता है, जब एक गिद्ध ने जनरल याहया ख़ान का रास्ता रोक लिया था। शायद कोई ऊपरी ताक़त उन्हें बताने की कोशिश कर रही हो कि युद्ध पर जाने का फ़ैसला सही नहीं है।

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