इंटरनेट डेस्क। भारत में पिछले कुछ महीनों में मॉब लिंचिंग की वारदातों में बढ़ोतरी हुई है। मॉब लिंचिंग का अर्थ भीड़ द्वारा कोई ऐसा काम करने से है जिसकी अनुमति संविधान द्वारा नहीं मिलती है। अगर इन घटनाओं पर गौर किया जाये तो आप पाएंगे कि इन घटनाओं का मुख्य कारण सोशल मीडिया पर फैली किसी ऐसी न्यूज़ से है जिसकी वजह से आक्रोशित भीड़ किसी व्यक्ति पर हमला कर देती है। ऐसी घटनाओं में अक्सर व्यक्ति को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।

भारत में बढ़ते मोबाइल और इंटरनेट यूज़र्स की संख्या से इन फर्जी ख़बरों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाना और भी आसान हो गया है। आज किसी भी व्यक्ति के पास सोशल मीडिया पर फैली किसी भी खबर के बारे मे सच जानने का समय नहीं है। इस फर्जी ख़बरों की वजह से गुस्साई हुई भीड़ किसी निर्दोष व्यक्ति पर हमला कर देती है। पिछले कुछ महीनों में भारत के अलग अलग हिस्सों में हुई मॉब लिंचिंग की घटनाओं में 2 दर्जन से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।

फेसबुक और व्हाट्सएप इस तरह की फर्जी खबरों को फ़ैलाने का एक आसान माध्यम बन गए है। गौ तस्करी और बच्चा चोरी के इल्जाम की झूठी इस मॉब लिंचिंग का सबसे बड़ा कारण है। तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में बच्चा चोरी की फर्जी खबरों पर भीड़ द्वारा कई लोगो की जान ली गई है वहीं उत्तरप्रदेश में गौरक्षा के नाम पर इस तरह की वारदातों की बात सामने आई है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों की सुनवाई करते हुए कहा हैं की ऐसे मामलों में सख्त कानून बनाने की जरूरत हैं और इस पर संसद में भी विचार किया जाना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कानून अपने हाथ में लेने वाले लोगों को भी लताड़ लगाई है। इन मामलों की अगली सुनवाई अब 28 अगस्त को की जायेगी।

हालाँकि सरकार और सोशल मीडिया साइट्स खुद भी इस तरह की खबरों को रोकने के लिए कदम उठा रही है लेकिन इनके द्वारा उठाये गए ये कदम पर्याप्त साबित नहीं हुए है। जहां सरकार को इसके लिए ठोस कदम उठाना ही होगा वहीं लोगों को भी फर्जी खबर पर विश्वास ना करके पहले खबर की पुष्टि करनी होगी और कानून हाथ में लिए बिना प्रतिक्रिया देनी होगी तभी इस तरह के मामलों पर लगाम लगाई जा सकेगी।

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