आपने भी यह सुना होगा कि भारत को विदेशी सोने की चिड़िया कहते थे। सोने की चिड़िया का तात्पर्य यह था कि यहां सोने-चांदी या हीरे-जवाहरात की भरमार थी, लेकिन इसके पीछे असली वजह थी यहां के विभिन्न प्रकार के मसालों की अकूत संपदा। भारतीय मसालों की सुगंध हजारों किलोमीटर दूर बैठे यूरोपियन लोगों को भारत खींच लाई। वास्को द गामा, पहला वो यूरोपियन शख्स था, जिसे मसालों की महक ने सबसे पहले अपनी तरफ खींचा।
अगर भारतीय मसालों की बात की जाए तो दक्षिण भारत अपने मसालों की खेती के लिए मशहूर था, बंगाल के सूती कपड़े और ढाका का मलमल पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था। हांलाकि भारत में पैदा होने वाले विभिन्न प्रकारों के मसालों की यूरोप में खूब डिमांड थी लेकिन इन सबमें काली मिर्च की कीमत तो पूछिए ही मत जनाब। दरअसल यूरोप में काली मिर्च का इस्तेमाल खराब मांस को संरक्षित करने और स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता था।

भारत में कोचीन और मालाबार तट पर काली मिर्च पैदा होती थी, जबकि लौंग बंगाल की खाड़ी के तट पर उगाई जाती थी। मालाबार या पश्चिमी घाट की काली मिर्च यूरोपियन लोगों के लिए सबसे ज्यादा मूल्यवान थी। काली मिर्च को यूरोपियन कारोबारी लाल सागर के रास्ते इटली पहुंचाया करते थे। ज्यादातर व्यापार सड़क मार्ग से फारस की ओर अरबों द्वारा समुद्र मार्ग से होता था।
आपको जानकारी के लिए बता दें कि काली मिर्च की खेप मालाबार से अदन की खाड़ी और फिर वहां से लाल सागर के जरिए मिस्र को जाती थी। मिस्र से यह भूमध्य सागर होते हुए इटली के बंदरगाहों तक पहुंचती थी।

भारतीय मसालों के कारोबार से आकर्षित होकर पुर्तगालियों ने साल 1511 तक भारत और सिलोन के मालाबार तट पर मसाले के व्यापार पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। 16वीं शताब्दी के अंत तक भारतीय मसालों पर एकाधिकार और उसके व्यापार से पुर्तगालियों को बहुत फायदा हुआ। काली मिर्च सबसे खास मसाला थी, जिसे पुर्तगाली कारोबारी लिस्बन ले जाते थे। 16वीं शताब्दी में इसकी कीमत लगभग सोने के बराबर मूल्य की ही हुआ करती थी। 16वीं शताब्दी में पुर्तगाल के राजस्व का आधा हिस्सा पश्चिम अफ्रीका के सोने और भारतीय काली मिर्च और अन्य मसालों के व्यापार से आता था।

भारतीय यात्राओं पर आधारित कई यूरोपिय पुस्तकों में भारत के वैभव का बखूबी वर्णन किया गया है। भारत के राजमहलों, रेशमी-सूती वस्त्रों, सोने-चांदी, हीरे-जवाहरातों की चकाचौंध देखकर यूरोपियन कारोबारी अपनी सुध खो बैठे थे। यूरोप के सबसे अमीर लोगों को भी भारतीय वैभव से जलन होने लगी थी।
गौरतलब है कि आज की तारीख में काली मिर्च, इलायची, दालचीनी, लौंग, जायत्री जैसे कई मसाले ख़रीदना काफी सस्ता है। लेकिन कभी इनकी कीमत सोने-चांदी के बराबर हुआ करती थी।
बतौर उदाहरण ईरान भारत से काली मिर्च खरीदता था, जो तुर्की, ग्रीस, इटली और बुल्गारिया होते हुए पुर्तगाल पहुंचने तक दस गुना कीमत में बिकती थी।

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