दोस्तों, भारत में महिला सशक्तिकरण का नारा वर्षों से चला आ रहा है। लेकिन हकीकत यही है कि अभी तक महिलाओं को सशक्त बनाने का यह नारा पूरी तरह से वास्तविकता के धरातल तक नहीं पहुंच सका है। हां, इतना जरूर है कि आज की तारीख में हर कोई महिलाओं को सशक्त बनाने की बात करता है। अगर हम इतिहास के पन्नों पर सरसरी नजर डालें तो पता चलता है कि भारत में महिला सशक्तिकरण के असली नायक तो डॉ. भीमराव अंबेडकर थे।

दोस्तों, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारतीय संसद में 5 फरवरी 1951 को हिन्दू कोड बिल पेश किया था। ​इस कोड बिल का असली मकसद हिंदू नारियों को सामाजिक शोषण से मुक्ति दिलाना तथा उन्हें पुरुषों के बराबर अधिकार दिलाना था।

बाबा साहेब ने राजनीति और संविधान के जरिए भारतीय समाज में व्याप्त स्त्री-पुरुष के बीच असमानता की गहरी खाई पाटने का सार्थक प्रयास किया। उन्होंने भारतीय संविधान में सामाजिक न्याय की पकिल्पना की। दोस्तों, आपको बता दें कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हिन्दू कोड बिल के जरिए जिस तरह से महिला हितों की रक्षा का प्रयास किया, उसके प्रमुख 4 अंग इस प्रकार थे।

- महिलाओं को संपत्ति में अधिकार देना और उन्हें गोद लेने का अधिकार।

- हिंदुओं में बहू विवाह प्रथा को समाप्त करके केवल एक विवाह का प्रावधान।

- पुरुषों के समान नारियों को भी तलाक का अधिकार देना। हिंदू समाज में केवल पुरुषों को ही यह अधिकार प्राप्त था।

- आधुनिक और प्रगतिशील विचारधाराओं के आधार पर हिंदू समाज को एकीकृत और मजबूत करना।

डॉ. भीमराव अंबेडकर यह मानते थे कि जब तक महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा नहीं मिलेेगा तथा उन्हें पुरूषों के समान अधिकार नहीं दिए जाएंगे। तब तक देश में सही मायने में प्रजातंत्र नहीं आएगा। शिक्षा और आर्थिक उन्नति ही महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने में मदद करेगी।

गौरतलब है कि हिन्दू कोड बिल का संसद में काफी विरोध हुआ। सनातनी धर्मावलंबियों से लेकर आर्य समाज तक के लोग अंबेडकर के विरोधी हो गए। वह कहा करते थे कि मुझे भारतीय संविधान के निर्माण से ज्यादा दिलचस्पी और खुशी हिन्दू कोड बिल पास कराने से होगी। संसद में हिंदू कोड बिल पास नहीं होने पर 27 सितम्बर 1951 को बाबा साहब ने मंत्रीपद से इस्तीफा दे दिया था।

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