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दोस्तों, आपको जानकारी के लिए बता दें कि 31 अक्तूबर 1984 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उन्हीं के दो सिख बॉडीगार्ड ने कर दी थी। ऐसे में आज उनकी 34वीं बरसी है। बता दें कि इंदिरा गांधी ने अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद सक्रिय राजनीति में एंट्री की थी।

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में इंदिरा गांधी को सूचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया था। शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी। वर्ष 1971 में उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

दोस्तों, आपको बता दें कि राजनीति में सक्रिय होने के बाद भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इंदिरा गांधी को आयरन लेडी के नाम से जाना गया। दरअसल उनके इस नाम के पीछे कुछ ऐसे बुलंद हौसले उत्तरदायी थे। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं, कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आखिरकार आयरन लेडी क्यों कहा गया।

बांग्‍लादेश की मुक्ति

1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद बांग्‍लादेश का जन्म हुआ। उनके इस ऐतिहासिक फैसले को पूरी दुनिया याद करती है। तत्त्कालीन बांग्लादेश तब पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था, जिसे पश्चिमी पाकिस्तान के शासक केवल अपना उपनिवेश मानते थे। इतना ही नहीं पाकिस्तान की सेना अपने ही नागरिकों पर जुल्म ढा रही थी।

सेना के जवान पूर्वी पाकिस्तान में महिलाओं के साथ दुष्कर्म कर रहे थे। ऐसे में इंदिरा गांधी की अगुवाई में भारत ने दखल देकर पूर्वी पाकिस्तान को अलग करने के लिए एक भयंकर युद्ध लड़ा, जिसके बाद एक नए देश बांग्लादेश का जन्म हुआ।

भारत को परमाणु शक्ति संपन्‍न देश बनाना

18 मई 1974 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अगुवाई में भारत ने राजस्‍थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। इस परीक्षण के बाद पूरी दुनिया चकित रह गई थी। भारत को परमाणु शक्ति संपन्‍न देश बनाने का यह पहला कदम था। परीक्षण के दौरान अमेरिका को भनक तक नहीं लगी थी। इसलिए बौखलाहट में अमेरिका ने भारत पर कई प्रतिबंध लगा दिए थे। बावजूद इसके तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया।

आपातकाल

25 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी। उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा था कि इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया। हांलाकि विपक्षी दल आपातकाल को आज भी काला दिवस के रूप में मनाते हैं।

ऑपरेशन ब्लूस्टार

इंदिरा गांधी ने वर्ष 1984 में स्वर्णमंदिर में ऑपरेशन ब्लूस्टार की आज्ञा दी थी। यह कड़ा फैसला उन्‍होंने पवित्र स्‍‍थल से उग्रवादियों को बाहर निकालने के लिए लिया था। कोर्ट मार्शल किए गए मेजर जनरल सुभेग सिंह, जरनैल सिंह भिंडरावाला तथा सिख सटूडेंट्स फ़ेडरेशन ने स्वर्ण मंदिर परिसर के चारों तरफ़ ख़ासी मोर्चाबंदी कर ली थी। उन्होंने भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और गोला-बारूद भी जमा कर लिया था। लिहाजा इंदिरा गांधी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाएं आहत करने के जोखिम को उठाकर भी इस समस्या का अंत करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने इंडियन आर्मी को ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश दिया।

3 जून 1985 को भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। शाम होते ही शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। 4 जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि 5 जून को बख़्तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया। ऑपरेशन ब्लूस्टार का खात्मा 5 जून की रात जरनैल सिंह भिंडरावाला की मौत से हुआ।

इंदिरा का आखिरी भाषण

अपनी मौत से ठीक एक दिन पहले इंदिरा गांधी ने आखिरी भाषण दिया था। उन्होंने कहा ​था कि मैं आज यहां हूं, कल शायद न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मैं अपनी आखिरी सांस तक देश की सेवा करती रहूंगी। जब मैं मरूंगी तो मेरे खून का एक-एक कतरा भारत को मजबूती देगा।

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