मशहूर शायर राहत इन्दौरी की एक बेहद खास पंक्ति है-सबका खून शामिल है वतन की मट्टी में, किसी के बाप का हिन्दुस्तान नहीं है। अब आप समझ गए होंगे कि आजादी की लड़ाई में हर धर्म और जाति के लोगों ने बराबर का योगदान दिया था। आजादी की लड़ाई में कई सेनानियों को अपने प्राणों की आहूति देनी पड़ी थी। इस क्रांतिकारी लड़ाई में कुछ दलित भी शामिल थे, लेकिन इतिहास के पन्नों पर आज उन्हें भुला दिया गया है।

इस स्टोरी में आज हम आपको एक ही ऐसे ही दलित क्रांतिकारी गंगू मेहतर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने 1857 के महाविद्रोह में महती भूमिका निभाई थी। 1857 के विद्रोह के समय भारत में हिंदू और मुसलमान सैनिकों ने मिलकर अग्रेंजों के विरूद्ध युद्ध किया था। इस दौरान अंग्रेजी सेना में ज्यादा संख्या में निम्न जातियों के लोग भी शामिल थे।

1857 के महाविद्रोह के समय अंग्रेजी सेना के खिलाफ बड़ी संख्या में निम्न जाति के सैनिकों ने भी मोर्चा खोल रखा था। इन्हीं सैनिकों में से एक नाम था गंगू मेहतर। हांलाकि गंगू मेहतर के बचपन से जुड़ी बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाती है।

कानपूर के लोग आज भी गंगू मेहतर को पूरे सम्मान के साथ याद करते हैं। भंगी जाति के गंगू मेहतर पहलवानी करते थे, बाद में पेशवा की सेना में शामिल हो गए। वह 1857 में अंग्रेज़ों के विरुद्ध सतीचौरा के करीब वीरता से लड़े। सैकड़ों अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारने के बाद आखिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें फांसी दे दी गई। कानपुर के लोग पहलवान गंगू मेहतर को सम्मान से गंगूदीन बुलाने लगे थे।

अंग्रेजों की राज्य हड़प नीति के तहत मराठों की हार के बाद अंतिम पेशवा बाजीराव कानपुर के बिठूर में बस गए। उन्होंने कुल 5 विवाह किए लेकिन संतान की प्राप्ति नहीं हुई थी। मजबूर होकर उन्होंने नाना साहब को गोद लिया था। 1851 में उनकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने नाना साहब को दत्तक पुत्र मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद नाना साहब ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का फैसला कर लिया था। इस दौरान नाना साहब की सेना में गंगू मेहतर भी शामिल थे।

शुरू में नाना साहब की सेना में गंगू मेहतर नगाड़ा बजाने का काम करते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी वीरता के दम पर एक वीर सैनिक होने की ख्याति प्राप्त कर ली। 1857 में जब नाना साहब और अंग्रेजों की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ तब गंगू मेहतर ने सैंकड़ों अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अब अंग्रेजी सेना ने गंगू मेहतर को जिंदा पकड़ने का आदेश जारी कर दिया, ताकि जनता के सामने उन्हें फांसी देकर जनता के सामने अंग्रेजों के क्रूर होने की मिशाल पेश की जा सके।

ऐसे में कुछ ही दिनों बाद ब्रिटिश सेना ने गंगू मेहतर को गिरफ्तार कर लिया। गंगू मेहतर को घोड़े से बांधकर अंग्रेजों ने पूरे शहर में घुमाया था, इसके बाद उन्हें बेड़ियां पहनाकर काल-कोठरी में डाल दिया गया। मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा मुक़र्रर हुई।

कानपुर के एक चौराहे पर 8 सितंबर 1859 को जनता के सामने ही गंगू मेहतर को फांसी पर लटका दिया गया। गंगू मेहतर कहा करते थे कि भारत की मिट्टी में हमारे पूर्वजों की कुर्बानी की गंध है, एक दिन यह देश जरूर आजाद होगा।

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