दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी हाल ही में यहां आकर कूड़े की इस समस्या से दिल्ली वालों को निजात दिलाने में नाकाम रहने का ठीकरा भाजपा पर फोडा़ो थो। चूंकि अगले माह दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने हैं, ऐसे में यह मुद्दा आजकल व्यापक चर्चा में है। यह समस्या उस हालत में है, जब इसके निस्तारण के लिए देश में व्यवस्थित रूप से सरकारी विभाग हैं, हजारों कार्यालय हैं और पूरे लाव-लश्कर के साथ लाखों की तादाद में सरकारी और स्थानीय निकायों के कर्मचारी हैं। उस हालत में कूड़ा कैसे भीषण समस्या बन गया, यह विचारणीय है। महानगरों-शहरों-कस्बों की बात छोड़िए, अनेक पर्यटक स्थल और तीर्थस्थल भी इसके दंश को झेलने को अभिशप्त हो चुके हैं।


देश की राजधानी दिल्ली के लिए तो कूड़े के पहाड़ एक भीषण समस्या बन चुके हैं। हालात ये बता रहे हैं कि चाहे कोई राजनीतिक दल कुछ भी दावा कर ले, परंतु हाल-फिलहाल इसका समाधान होना आसान नहीं दिखता है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि लाख कोशिशों के बावजूद इन पहाड़ों पर कूड़ा कम होने के बजाय दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसका जीता जागता सबूत है कि बीते वर्षों की तुलना में इस साल यहां पर अभी तक कूड़े की मात्रा में 851 टन की वृद्धि होना, जबकि साल 2024 के मार्च तक इन तीनों (गाजीपुर, भलस्वा और ओखला) लैंडफिल साइट को साफ कर दिए जाने का लक्ष्य निर्धारित है।


दुखदायी बात यह है कि इन कूड़े के पहाड़ों पर आग लगने की घटनाएं भी सामान्य होती जा रही हैं। यही नहीं, इनके आसपास के इलाके की हवा की गुणवत्ता इतनी दुष्प्रभावित हो चुकी है जिससे जहरीली हो चुकी हवा से आसपास रहने वाले लोगों का जीना हराम हो गया है। पर्यावरण तो दुष्प्रभावित हुआ ही है, प्रदूषण बढ़ रहा है सो अलग। इससे समीपस्थ इलाके के लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और वे अस्थमा, पेट, लिवर, आंत्रशोथ व फेफड़े से संबंधित जानलेवा बीमारियों के शिकार हो अनचाहे मौत के मुंह में जा रहे हैं।


वैसे दिल्ली में कचरे की समस्या केवल यहीं तक सीमित नहीं है कि यहां कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं। बल्कि यहां अधिकांश क्षेत्रों में निर्माण और पुनर्निर्माण कार्यों की प्रक्रिया निरंतर जारी रहने समेत सड़कों के किनारे अव्यवस्था रहने के चलते धूल और कूड़ा यत्र-तत्र फैला हुआ दिखता है। अक्सर इसके लिए लोग भी जिम्मेदार देखे जा सकते हैं जो अपने आवासीय परिसर, व्यावसायिक प्रतिष्ठान आदि को तो पूरी तरह से साफ रखते हैं, परंतु आसपास की सड़क की सफाई के प्रति बिल्कुल सजग नहीं रहते। कई बार अतिक्रमण के कारण भी सार्वजनिक जगहों की सही तरीके से सफाई नहीं हो पाती है, जिसके लिए नागरिक भी जिम्मेदार हैं। ऐसे में प्रत्येक नागरिक को सजग होना होगा।

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