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राजस्थान के राजनीतिक संघर्ष में भाजपा हाईकमान और अपने विरोधियों पर भारी पड़ीं हैं सीएम वसुंधरा राजे। लिहाजा जबरदस्त विरोध के बावजूद भी भाजपा आलाकमान ने इस बार के विधानसभा चुनाव में भी एक बार फिर से वसुंधरा राजे सिंधिया के नाम पर ही चुनाव लड़ने का फैसला किया है।

सियासी गलियारे में इस बात की जोरों से चर्चा चल रही थी कि संभव है बीजेपी वसुंधरा राजे की जगह किसी दूसरे नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। लेकिन रविवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने वसुंधरा राजे का नाम लेकर सभी कयासों पर एक साथ रोक लगा दिया।

दोस्तों, आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव-2013 तथा लोकसभा चुनाव-2014 में जबरदस्त जीत के बाद 2018 तक राजस्थान में कई उप चुनाव हुए लेकिन इन सभी चुनावों में वसुंधरा राजे को मात खानी पड़ी। शायद यही असली वजह रहा कि वसुंधरा राजे के खिलाफ बीजेपी के कई वरिष्ठ नेताओं ने विद्रोही तेवर अपना लिया था, लेकिन इन सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए आखिरकार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने वसुंधरा राजे की अगुवाई में ही राजस्थान में चुनाव लड़ने की विधिवत घोषणा कर दी। अब आप सोच रहे होंगे कि कहीं यह भाजपा की मजबूरी तो नहीं है।

आपके इस प्रश्न का माकूल जवाब देने के लिए हम आपको वह 5 वजहें बताने जा रहे हैं, जिसके चलते भाजपा हाईकमान ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व में राजस्थान विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है।

1- राजस्थान बीजेपी में वसुंधरा राजे की दमदार पकड़

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने कई शक्ति प्रदर्शनों से पार्टी आलाकमान को यह अहसास करा चुकी हैं कि उनकी जगह किसी दूसरे को सीएम का चेहरा घोषित करने पर पार्टी में टूट का खतरा सुनिश्चित है। मीडिया खबरों के अनुसार, राजस्थान बीजेपी में राजे के खेमे में कुल 80 विधायक हैं और उनके पूर्ण समर्थक हैं। केवल वसुंधरा राजे के एक इशारे पर कोई भी कदम उठाने को हमेशा तैयार रहते हैं। जाहिर है भाजपा हाईकमान को उनके नाम की घोषणा करनी पड़ी।

2- राज्य की राजनीति में पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा

दोस्तों, इस बात की आपको जानकारी होनी चाहिए कि राजस्थान में बीजेपी का मतलब वसुंधरा राजे और वसुंधरा राजे का मतलब भारतीय जनता पार्टी है। मौजूद समय में राज्य में इनके कद का कोई भी बड़ा चेहरा नहीं है। ओम माथुर, भूपेंद्र यादव, गुलाबचंद कटारिया जैसे कई बड़े नाम हैं, लेकिन इनके पास जनाधार नहीं है। बतौर उदाहरण साल 2008 के विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने वसुंधरा राजे से अपना हाथ हटा लिया था, बावजूद इसके वह खुद को दम पर 78 सीटें जीतने में कामयाब रही थीं।

3- भाजपा हाईकमान को अभी मिशन-2019 की चिंता

भाजपा हाईकमान राजस्थान विधानसभा चुनाव से ज्यादा मिशन-2019 को लेकर फिक्रमंद है। इस प्रकार बीजेपी आलाकमान 2019 से पहले राजे को नाराज करके किसी भी प्रकार जोखिम नहीं लेना चाहता है। लोकसभा चुनाव-2014 में वसुंधरा राजे ने बीजेपी को शानदार जीत दिलाई थी। संभव है बुरे हालात के बावजूद बीजेपी इस राज्य में कम से अपनी आधी सीटें आसानी से बचा सकती है। वसुंधरा राजे के नाराज होते ही बीजेपी इस राज्य में अपनी अधिकांश लोकसभा सीटें गवां सकती है।

4- मध्य प्रदेश सरकार से भी जुड़े हैं वसुंधरा राजे के तार

ग्वालियर के सिंधिया परिवार की बेटी वसुंधरा राजे की बहन शिवराज सरकार में मंत्री हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया राजे के भतीजा हैं। बता दें कि राजस्थान के साथ-साथ मध्य प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में राजे की जगह किसी दूसरे चेहरे को उतारने पर इसका विपरीत असर मध्य प्रदेश में भी देखने को मिल सकता है।

5- जातिगत इंजीनियरिंग

वसुंधरा राजे जाट समुदाय के धौलपुर राजघराने की बहू हैं। राज्य में जाट समुदाय की आबादी 12 फीसदी है, जो कि वसुंधरा के समर्थन में पूरी तरह से खड़ा है। इतना ही नहीं जाट समुदाय इस राज्य की एक मजबूत कौम है। इसी के चलते ओबीसी वोटों को भी साधने की कोशिश रहती है। ओबीसी मतों के ध्रुवीकरण के लिए ही बीजेपी ने मदन लाल सैनी को राज्य का अध्यक्ष बनाया है।

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