केंद्र सरकार की सरकारी योजनाओं और खासकर कोरोना काल में शुरू किये गए मुफ्त राशन के लाभार्थी भाजपा की नई ताकत बनकर उभरे हैं और उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में उसकी जीत में निर्णायक भूमिका निभा चुके हैं। उसी की देखते हुए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में विपक्ष (मुख्यतौर पर कांग्रेस) भले ही पुराने राजनीतिक समीकरणों के सहारे भाजपा को चुनौती देने की कोशिश कर रही हो, लेकिन लाभार्थियों का नया वोट बैंक मुकाबले में भाजपा को बढ़त दिला सकता है।

करोड़ो लोगों को मिल रहा है योजना का लाभ
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत गरीब परिवार के हर सदस्य को पांच किलो अनाज प्रति महीने दिया जाता है। केंद्र सरकार की यह योजना 30 सितंबर को खत्म हो रही थी, लेकिन इसे तीन महीने यानी 31 दिसंबर के लिए बढ़ा दिया गया। माना जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनावों को देखते हुए योजना को तीन महीने के लिए बढ़ाया गया है। दोनों राज्यों में लगभग आधी जनसंख्या को मिल रहा यह लाभ रंग दिखा सकता है। पूरे देश में 80 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिल रहा है। गुजरात में छह करोड़ की जनसंख्या में मुफ्त अनाज पाने वालों की संख्या लगभग साढ़े तीन करोड़ है। इसी तरह से हिमाचल प्रदेश में 69 लाख जनसंख्या में से लगभग 29 लाख को इसका लाभ मिल रहा है।

आदिवासी वोट बैंक है चुनौती
एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में लाभार्थी भाजपा से जुड़ते हैं, तो हिमाचल प्रदेश और गुजरात में उनके नहीं जुड़ने का कोई कारण नहीं है। ध्यान देने की बात है कि गुजरात में आदिवासी वोट बैंक भाजपा के लिए अब तक चुनौती बनी हुई है। मुफ्त अनाज की योजना आदिवासी वोट बैंक और भाजपा के बीच की खाई पाटने में भी मददगार हो सकती है। बात सिर्फ मुफ्त अनाज की योजना तक सीमित नहीं है। 2019 से गरीब किसानों को सालाना छह हजार रुपये सालाना सम्मान निधि के रूप में दिया जा रहा है।

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