कारगिल युद्ध की कहानी हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले कैप्टन सौरभ कालिया के बिना अधूरी है, जिन्होंने कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और वीरता की मिसाल पेश की। सौरव कालिया ने अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा पास करके 12 दिसंबर, 1998 को भारतीय थलसेना में कमिश्नर अधिकारी का पद ग्रहण किया।


कैप्टन सौरभ कालिया को कारगिल के समीप काकसर की बजरंग पोस्ट पर 4 जाट रेजिमेंट के सात तैनात किया गया। इसी बीच 15 मई को खुफिया सूचना मिली कि पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सीमा की ओर बढ़ रहे हैं। सौरव कालिया भी तेजी से दुश्मन की ओर बढ़ रहे थे और तभी उन पर हमला कर दिया गया। फिर भी सौरव कालिया का जज्बा दुश्मनों पर भारी पड़ रहा था।

गोलीबारी में सौरव और उनके साथ ही बुरी तरह घायल हुए। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। लेकिन अंतिम में सौरव को घेर लिया और उन्हें बंदी बना लिया। दुश्मन सौरव से खुफिया जानकारी हासिल करना चाहते थ। इसीलिए उन्होंने सौरव को 22 दिन तक अपनी हिरासत में रखा।

सौरव ने जब कोई जानकारी नहीं दी तो उन्हें प्रताड़ित किया गया। सौरव कालिया के कानों में गर्म लोहे की रॉड से छेद किया गया, जिसके बाद उनकी आंखे निकाल ली गई थी। उनकी हड्डियां भी तोड़ दी गई लेकिन फिर भी उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी। देश के लिए उनका बलिदान सर्वोच्च है।

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