भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एक कठोर और अपने फैसले पर अड़ी रहने वाली महिला मानी जाती थी। किसी भी फैसले को कैसे लागू करना है ये उनसे अच्छा कोई नहीं जानता था। वे इतिहास में हमेशा के लिए अमर रहेगी। आज हम इंदिरा गांधी के जीवन से जुड़े एक निजी किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल इंदिरा गांधी खुद को बदसूरत समझती थी। जी हाँ आपने सही सुना।

इंदिरा गांधी की करीबी दोस्त पुपुल जयकर ने इंदिरा के सहयोग से ही उनकी बायोग्राफी लिखी थी। इस में बताया गया है कि इंदिरा 13 साल की उम्र में खुद को बदसूरत मानती थी।

जब इंदिरा काफी छोटी थी तब उनके बचपन का माहौल ठीक नहीं था। ‘6 साल की उम्र में ही इंदिरा अपनी मां की हताशा को काफी समझती थी और यदि कोई उनकी मां को कुछ कहता तो वह अपनी मां के पक्ष में बोलती थी। बीबी अम्मा और बुआ विजयलक्ष्मी हमेशा उनकी मां को ‘घटिया ताने’ देती थी। उसने अपनी मां के पक्ष में दादी, परदादी, दादा और पिता तक से बहस की। लेकिन बाद में इंदिरा को अहसास हुआ कि कोई उनकी बातों को सुनता नहीं है और ना ही बहस देता है। इन सब चीजों के बीच इंदिरा ने अपने इमोशंस खुद तक ही रखना और चुप रहना सीख लिया। वे अपनी बातों का जिक्र किसी से भी नहीं करती थी।

इंदिरा के वो दिन काफी दुःख भरे थे। विजयलक्ष्मी यानि उनकी बुआ अक्सर उन्हें बदसूरत और मुर्ख कहती थी। इस बात को इंदिरा ने सुन लिया था। 13 साल की बच्ची के लिए ये सब उसे अंदर से तोड़ देने वाला था। उसकी बुआ की टिप्पणियों का कोई विरोध भी नहीं करता था। इंदिरा को लगता था कि उनकी बुआ ठीक कह रही हैं और वे अपने आपको बदसूरत ही मानने लगी। इन सब चीजों ने इंदिरा के आत्मविश्वास को काफी तोड़ दिया था। एक चंचल शरारती बालिका रातों-रात संकोची बन गई।’

जैसे जैसे इंदिरा बड़ी हुई उन्होंने पूरी दुनिया से कटना और अकेले रहना शुरू कर दिया। इंदिरा का स्वभाव ऐसा हो गया कि वे अक्सर चुप ही रहती थी। पुपुल लिखती हैं कि इंदिरा ने जहरीले शब्दों के लिए बुआ को कभी माफ नहीं किया।

इंदिरा सफेद ढीले ढाले कुर्ते पहना करती थी और इन शब्दों ने उसके यौवन को मार दिया। उनकी मौत से एक पखवाड़े पहले तक भी वे शब्द उनके ज़ेहन में ताजा थे।

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