चीन और भारत का युद्ध साल 1962 में हुआ था। इसके बाद साल 1964 में दोनों देशों के बीच छोटी सी झड़प हुई थी। इसमें कई सैनिक शहीद हुए थे जिसमे डोगरा रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह भी शहीद होने वालों की लिस्ट में शामिल थे।

युद्ध के तीन बाद भी हरभजन सिंह की लाश नहीं मिल रही थी, तभी उन्होंने अपने एक साथी को वो जगह बताई जहाँ उनकी बॉडी थी और वहां जाने पर वाकई में वहां ही उनकी बॉडी मिली। इसके बाद पूरे राजकीय सम्मान के साथ हरभजन सिंह का अंतिम संस्कार किया गया था।

इसके बाद शहीद हरभजन सिंह ने अपने एक साथी को समाधि स्थल पर मंदिर बनाने के लिए कहा था। उनके समाधी स्थल पर ही उनके लिए मंदिर बनवाया गया और हरभजन सिंह डोगरा रेजिमेंट के लिए बाबा बन गए।

हरभजन सिंह के शहीद होने के बाद भी सेना को उनका अहसास होता है। पूर्वी सिक्किम के नाथुला दर्रे में इनकी तैनाती आज भी होती है। उनके कमरे की रोजाना सफाई की जाती है और बिस्तर लगाया जाता है। इस कमरे में शहीद हरभजन सिंह की वर्दी तथा जूते रखे जाते हैं।

इंडियन आर्मी उन्हें सैलरी भी देती है और उनका प्रमोशन भी किया जाता है। उन्हें हर साल 2 महीने की छुट्टी भी दी जाती है। छुट्टी के दौरान उनकी वर्दी और अन्य समान को उनके घर भेजा जाता है और 2 महीने की छुटिटयां खत्म होते ही उन्हें वापस भी लाया जाता है।

चीनी सेना भी हरभजन सिंह की शक्ति को मानती है और जब भी चीन और भारत के बीच मीटिंग होती है तो उनके लिए एक कुर्सी को खली छोड़ा जाता है।

Related News