राजस्थान की रंग बिरंगी संस्कृति का उत्सव है गणगौर, जानिए इस पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें
बता दें कि राजस्थान में चैत्र के महीने में गणगौर का पर्व मनाया जाता है। चैत्र कृष्ण एकादशी से चैत्र शुक्ल तृतीया तक गणगौर पूजन का विशेष महत्व है। राजस्थान के नगरीय और ग्रामीण अंचलों में गणगौर पर्व मनाने की परंपरा बदस्तूर जारी है। इस साल गणगौर का पर्व 8 अप्रैल को है।
हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि गणगौर के दिन भगवान शिव ने पार्वतीजी को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री-समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। गणगौर के दिन सुहागिन महिलाएं दोपहर तक व्रत रखती हैं। महिलाएं और कुंवारी कन्याएं नाच-गाकर तथा पूजा-पाठ कर हर्षोल्लास से यह त्यौहार मनाती हैं। आइए जानें, गणगौर पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें।
- वास्तव में गणगौर पर्व भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा का दिन है। हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, मां पार्वती ने तपस्या की थी तथा भगवान शिव को प्राप्त किया था। मान्यता है कि तभी से गणगौर का पर्व मनाया जाता है।
- सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए गणगौर की पूजा करती हैं।
- पूजा के दिन गणगौर माता को चूरमे का भोग लगाया जाता है। उसी दिन शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर माता का किसी पवित्र कुंड या सरोवर में विसर्जन कर दिया जाता है।
- गणगौर का प्रसाद पुरूषों के लिए वर्जित होता है। गणगौर का प्रसाद केवल महिलाएं, कुंवारी कन्याएं ही खा सकती हैं। हांलाकि इस दिन घर में बने अन्य पकवान सभी खा सकते हैं।
- गणगौर पर्व पर 16 सुहागिन महिलाओं को 16 श्रृंगार की वस्तुएं भेंट की जाती है। इनमें कांच की चूड़ियां, महावर, सिंदूर, कंघा, मेंहदी, काजल, दर्पण आदि चीजें शामिल हैं।
- गणगौर के दिन राजस्थान के कई शहरों अथवा गांवों में मेले भरते हैं। इन मेलों में राजस्थान की लोक संस्कृति की अद्भुत छटा दिखाई देती है।