मुगलों और राजपूतों ने प्राचीन काल में सत्ता के लालच में खूब युद्ध लड़े थे किन्तु अधिकतर राजपूत शाशक मुगलों से युद्ध हार जाते थे और इसका कारण उनके बीच का भेदभाव और भाईचारे की कमी थी। इसी का फायदा मुगलों को मिलता था और वे आसानी से युद्ध जीत जाते थे।

कई इतिहासकार बताते हैं की राजपूत शासक बहुत ही अधिक स्वाभिमानी थे और वे अक्सर छोटी छोटी बातों को लेकर अपने ही भाइयों से युद्ध कर लेते थे और इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1565 में राजस्थान मतीरे के युद्ध के रूप में मिलता है। यह युद्ध केवल तरबूज के लिए लड़ा गया था।

राजपूत धर्म निति में काफी अधिक विश्वास रखते थे और इसका फायदा मुगलों को मिलता था। जब भी कोई मुगल योद्धा युद्ध हार जाता था और वो युद्ध के मैदान को छोड़ कर भागने लगता था तो राजपूत शासक उस पर हमला नहीं करते थे क्योकिं वे किसी पर भी पीछे से वार करने के पक्ष में नहीं थे।

राजपूत शासक उनकी शरण में आए लोगों को नहीं मारते थे जबकि मुगल किसी को जिन्दा नहीं छोड़ते थे। कई इतिहासकार यह भी बताते हैं कि राजपूत शासक अपनी सेना में केवल राजपूत योद्धाओं कोई शामिल करते थे।

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