वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 13 मई को है। प्राचीन काल में इसी​ तिथि पर माता सीता धरती से प्रकट से हुई थीं। हिंदू पंचांग में इस तिथि को सीता नवमी कहा जाता है। रामायण के मुताबिक, एक बार राजा जनक भूमि पर हल चला रहे थे, तभी उन्हें धरती से एक कन्या की प्राप्ति हुई। चूंकि हल की नोक को सीत कहते हैं, इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया था। राजा जनक ने सीता को अपनी पुत्री मान लिया था, इसी कारण उन्हें जानकी भी कहा जाता है।

उज्जैन के श्रीराम कथाकार पं. मनीष शर्मा के मुताबिक बचपन में खेलते समय देवी सीता ने शिव जी का धनुष उठा लिया। ऐसा देख राजा जनक समझ गए कि ये कोई सामान्य बालिका नहीं है, क्योंकि शिव धनुष को रावण, बाणासुर आदि कई वीर हिला तक नहीं सके थे।

इसलिए राजा जनक ने जानकी का विवाह शिव धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति के साथ करने का निश्चय किया था। इसके बाद स्वयंवर में भगवान श्रीराम ने ​उस शिव धनुष को न केवल उठाया बल्कि तोड़ भी दिया था। इसके बाद श्रीराम और सीता का विवाह संपन्न हुआ। इस स्टोरी में हम आपको माता सीता से जुड़ी कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं। इन बातों का ध्यान रखने पर हम कई परेशानियों से बच सकते हैं।

1- माता-पिता को सम्मान देना

सीता अपने माता-पिता को पूरा सम्मान देती थीं, उनकी सभी आज्ञाओं का पालन करती थीं। वनवास के समय जब माता-पिता उनसे मिलने आए तब, उन्होंने वहां पहले से ही उपस्थित सासों से आज्ञा ली, उसके बाद अपने परिजनों से मिलने गईं।

2- पति की सेवा

विवाह के पश्चात माता सीता स्वयं श्रीराम की देखभाल करती थीं, जबकि महल में असंख्य सेवक थे। जब राम को उनके पिता दशरथ ने वनवास जाने की आज्ञा दी, तो वह भी राम के साथ वन जाने को तैयार हो गईं।

3- सभी की बातें ध्यान से सुनना

सीता पतिव्रता धर्म की साक्षात उदाहरण थीं, लेकिन जब माता अनसूयाजी ने उनको पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया, तब उन्होंने बिना किसी अभिमान के सारी बातें सुनी।

3- निडर रहना

रावण ने सीता का हरण करके उन्हें अशोक वाटिका में रखा था, लेकिन सीता ने रावण के किसी भी प्रलोभन को स्वीकार नहीं किया। रावण से सभी देवता डरते थे, लेकिन सीता निडर होकर उसके सामने ही उसका तिरस्कार करती थीं।

4- हमेशा सतर्क रहना

अशोक वाटिका में हनुमान जी ने माता सीता को श्रीराम नाम अंकित मुद्रिका दी और रामकथा सुनाई। बावजूद इसके माता सीता ने हनुमान जी की बातों का आसानी से विश्वास नहीं किया। जब उन्हें पूरी तरह से विश्वास हो गया कि हनुमान जी मन, क्रम और वचन से राम के दूत हैं, उसके बाद ही वार्तालाप किया।

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