पति के कहने के बाद भी कुंती ने चौथे बच्चे के लिए क्यों कर दिया था मना, जानिए
शूरसेन की बेटी और कुंतीभोज की दत्तक पुत्री कुंती या पृथा ने ऋषि दुर्वासा की आराधना की और इस से प्रसन्न होकर ऋषि ने उन्हें एक मंत्र दिया, जिसके माध्यम से वे किसी भी देवता का आह्वान कर उससे संतान पैदा कर सकती थीं। सबसे पहले उन्होंने सूर्य का आह्वान किया और सूर्य से उनका बेटा कर्ण पैदा हुआ। लेकिन वे उस समु कुंवारी थी इसलिए उन्होंने कर्ण को पानी में बहा दिया। बाद में उन्होंने हस्तिनापुर के कुमार पांडु को अपना पति चुना। लेकिन पांडु को कोई संतान नहीं हो सकती थी। इसलिए पांडु के कहने पर कुंती ने तीन देवों का आह्वान कर उनसे तीन पुत्रों को जन्म दिया। उन्होंने माद्री (पांडु की दूसरी पत्नी) को यह मंत्र सिखाया, जिससे माद्री के दो पुत्र हुए। जब पांडु की मृत्यु हो गई तो कुंती अपने पुत्रों और जेठ-जिठानी धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ वन में चली गईं
कुंती की कहानी वरिष्ठ लेखक डॉ नरेंद्र कोहली के नज़रिए से
कुंती पर एक किताब लिख चुके डॉ नरेंद्र कोहली. कहते हैं,‘‘महाभारत काल की महिलाएं और पत्नी और मां के रूप में वो बहुत सशक्त रही हैं। कुंती की गिनती भी सशक्त महिलाओं में होती है लेकिन उस समय उनकी उम्र काफी कम थी। जब वे छोटी थी तभी उनके पिता ने उन्हें अपने फुफेरे भाई को गोद दे दिया। उन्हें दुर्वासा को संभालने की ज़िम्मेदारी भी मिली। उन्होंने बचपने में मंत्र को परखने के लिए सूर्य को बुलाया तो उनके मना करने के बावजूद सूर्य ने बालात् उन्हें संतान दी। इस बात को मैं नहीं मानता कि इस बात की जानकारी उनके पिता को नहीं उन्हें पता था, क्योंकि किसी बच्चे को एक टोकरी में रखकर चंबल नदी में बहाया जाए और टोकरी यमुना नदी से होती हुई गंगा नदी में हस्तिनापुर तक बिना किसी नुक़सान के पहुंच जाए, ये कैसे हो सकता है? हुआ यूं होगा कि कुंतीभोज के कहनेपर ही वो संतान हस्तिनापुर में अधीरथ को दे दी गई। लेकिन कुंती इस बात से अनजान थी और उन्होंने स्वयंवर में हस्तिनापुर के राजकुमार पांडु से विवाह किया। पांडु सुदूर थे लेकिन उनके नपुंसक होने के बारे में भी कुंती को पता था। जब वे अपने पति के साथ ज़िद करके वन में जाती हैं और पति के कहने पर तीन बेटे पैदा करने के बाद चौथे के लिए मना करती हैं, कहती हैं,‘तीन तक तो धर्म है, पर चौथा व्यभिचार है।
अब तुम्हारी बात नहीं मानूंगी.’ जब पांडु की मृत्यु होती है और कुंती उसके साथ चितारोहण करना चाहती है लेकिन जब माद्री उन्हें ये कहती है कि तुम्हारे बेटों को वो स्नेह नहीं दे पाऊंगी, जो तुम मेरे बेटों को दे सकती हो तो वो अपना विचार बदल लेती है। जब वो हस्तिनापुर आती है तो हर तरह से पीड़ित होती है, क्योंकि भीष्म पितामह हैं तो, पर किसी छत की तरह नहीं, बल्कि आसमान की तरह, जो किसी तरह की बारिश या तूफ़ान से उनकी रक्षा नहीं करते। क्योंकि वो धृतराष्ट्र के बेटों को ग़लत काम करने से नहीं रोकते, जिसकी शिकायत कुंती विदुर से करती हैं, पर विदुर उन्हें चुप रहने की सलाह देते हैं। तो कुंती अपने परिजनों में नहीं, बल्कि अपने शत्रुओं के बीच रहकर अपने बच्चों को पाल रही हैं। कुंती की ये हिम्मत उसके सामर्थ्य को दिखाती है।