हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, विघ्नहर्ता श्री गणेश अपने भक्तों पर जल्द ही प्रसन्न होते हैं। प्रथम पूज्य गणेश गणों के ईश कहलाते हैं। भगवान शंकर और भगवान विष्णु की तरह ही गणपति महाराज ने भी आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए अलग-अलग अवतार लिए हैं। भगवान गणेश के इन अवतारों का वर्णन मुद्गल पुराण और गणेश अंक में मिलता है। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि भगवान गणेश ने लंबोदर अवतार क्यों लिया?

मुद्गल पुराण के अनुसार, एक बार महाशक्तिशाली राक्षस क्रोधासुर ने कठिन तपस्या करके सूर्यदेव को प्रसन्न कर लिया। क्रोधासुर ने सूर्यदेव से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसे तीनों लोकों में कोई भी पराजित नहीं कर सके। सूर्यदेव से अजेय होने का वरदान प्राप्त कर क्रोधासुर अपने गुरू शुक्राचार्य के पास गया। इसके बाद शुक्राचार्य से आशीर्वाद लेकर क्रोधासुर तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने के लिए अपनी सेना के साथ प्रस्थान किया। क्रोधासुर ने सबसे पहले देवताओं पर आक्रमण किया। इस महाशक्तिशाली राक्षस ने युद्ध में सभी देवताओं को परास्त कर उन्हें उनके ही साम्राज्य से बाहर निकाल दिया और स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया।

इसके बाद देवराज इंद्र सहित सभी अन्य देवगणों ने विघ्नहर्ता गणेश जी आराधना की। तत्पश्चात भगवान गणेश अपने लंबोदर अवतार में देवों के समक्ष प्रकट हुए। देवताओं का दुख सुनकर गणेश जी बहुत क्रोधित हो गए और लंबोदर स्वरूप गणेश जी ने क्रोधासुर को युद्ध के लिए ललकारा।

क्रोधासुर ने पहले अपने दो पुत्रों हर्ष और शोक को लड़ने भेजा। लम्बोदर ने जहां एक तरफ हर्ष को अपनी सूंड से उठाकर पटका, वहीं दूसरी ओर अपने फरसे से शोक का सिर धड़ से अलग कर दिया। अपने पुत्रों की मौत से व्याकुल क्रोधासुर स्वयं युद्ध करने आ पहुंचा। कहते हैं कि तब भगवान गणेश ने अपना शरीर पर्वतनुमा बना लिया और अपने पेट को जांघों तक लटका दिया और क्रोधासुर को निगल लिया। क्रोधासुर का घमंड चूर होने और उसके क्षमा मांगने के पश्चात भगवान लम्बोदर ने उसे छोड़ दिया और पाताल लोक जाने का आदेश दे दिया।

एक अन्य पौराणिक कथा है कि अपने पुत्रों के निधन के पश्चात जब क्रोधासुर ने अपनी गदा से भगवान् गणेश पर वार किया, तब भगवान लम्बोदर ने अपने फरसे से उसकी गदा को ही चीर कर रख दिया। इसके बाद लम्बोदर ने क्रोधासुर से कहा कि समय व्यर्थ न करो, तुम यह युद्ध हार चुके हो। मुझ पर किसी भी शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता, क्योंकि मेरा तो कोई रूप ही नहीं है।

इसके बाद क्रोधासुर भगवान लंबोदर के चरणों में गिर पड़ा और भक्ति-भाव से उनकी स्तुति करने लगा। इसके बाद भगवान लंबोदर ने क्रोधासुर को अभयदान दे दिया। ऐसे में भगवान लंबोदर का आशीर्वाद प्राप्त कर क्रोधासुर अपना शेष जीवन बिताने के लिए पाताल लोक चला गया। इसके बाद सभी देवता प्रसन्न होकर भगवान लंबोदर का गुणगान करने लगे। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस घटना के बाद से भगवान गणेश की लंबोदर अवतार के रूप में पूजा होने लगी।

Related News