यह बात वर्ष 1936 की है, जब ओलपिंक के दौरान भारतीय हॉकी टीम का सामना तानाशाह एडोल्फ हिटलर के देश जर्मनी से था। मैच होना था 14 अगस्त को लेकिन बारिश के चलते यह मैच 15 अगस्त को खेला गया। शुरू में ही जर्मनी के खिलाड़ियों ने आक्रामक रूख अख्तियार कर लिया। मेजर ध्यानचंद के दांत में चोट लग गई। कुछ समय के लिए ध्यानचंद को मैदान से बाहर बैठना पड़ा, लेकिन चोटिल हालत में यह​ खिलाड़ी मैदान पर लौटा और साथी खिलाड़ियों से कहा कि मैदान पर बदले की भावना नहीं बल्कि बढ़िया खेल का प्रदर्शन करो। इसके बाद ध्यानचंद ने ताबड़तोल गोल दागने शुरू कर दिए।

शुरूआती मिनटों में ही ध्यानचंद की टीम ने जर्मनी की ऐसी धुलाई की कि जर्मनी का तानाशाह हिटलर स्टेडियम से बाहर निकल गया था। इस मैच में भारत की टीम ने जर्मनी को 1 गोल के मुकाबले 8 गोल से शिकस्त दी थी।

जर्मनी का तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी मेजर ध्यानचंद के चर्चों से अंजान नहीं था। हांलाकि मैच के दौरान वह काफी देर तक स्टेडियम में मौजूद नहीं था, लेकिन 16 अगस्त को मैच के समापन के दिन जब भारतीय हॉकी टीम गोल्ड मेडल पहनने वाली थी, तब एडोल्फ हिटलर भारतीय खिलाड़ी ध्यानचंद से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें जर्मनी के सेना में जनरल बनाने का प्रस्ताव दे दिया। लेकिन ध्यानचंद ने हिटलर के प्रस्ताव को बड़ी आसानी से ठुकरा दिया। ध्यानचंद जब स्वदेश लौटे तब उनका शानदार स्वागत किया गया था।

लोगों का कहना है कि मैदान पर खेलते समय गेंद मेजर ध्यानचंद की हॉकी से चिपक सी जाती थी। कई बार ध्यानचंद की हॉकी तोड़कर भी देखी गई, यहां तक कि नई हॉकी थमाई गई बावजूद इसके वैसा ही चमत्कारिक खेल दिखाया था। 2 दिसंबर 1979 को उनकी आखिरी विदाई के अवसर पर उनके पार्थिव शरीर पर दो हॉकी स्टिक क्रॉस बनाकर रखी गई थी।

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