मंत्रिमंडल का असली मुखिया प्रधानमंत्री ही होता है। देश की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां प्रधानमंत्री के हाथों में ही होती है। आज तक कोई भी दलित प्रधानमंत्री के पद तक नहीं पहुंच पाया है।

आपको पता दें कि सियासी राजनीति में एक बार देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन उन्होंने ये प्रस्ताव एक झटके में ही ठुकरा दिया था। उन्होंने कहा कि वे राष्ट्रपति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं।

कांशीराम का नारा था-जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। जिसका अर्थ है कि वे देश के दलितों के लिए एक केंद्र बिंदु बनना चाहते थे। दरअसल अटल बिहारी वाजपेयी कांशीराम के लक्ष्य को समझ ही नहीं पाए। उनका असली उद्देश्य था कि देश का दलित और गरीब लोगों को ऊँचे ओहदे उपलब्ध करवाए जाएं। उन्होंने मायावती को देश की पहली ​दलित महिला मुख्यंमत्री बनाकर अपने सपने को सच कर दिखाया।

कांशीराम पर ये आरोप भी लगाया गया था कि उन्होंने अपने फायदे के लिए सपा, कांग्रेस और बीजेपी से गंठबंधन किया है। लेकिन उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि ये समझौता है गठबंधन नहीं है।

आजादी के दिनों में दलित संगठनों का साथ नहीं देकर कांग्रेस का साथ देने वाले दलित नेताओं को वह चमचा कहते थे।

Related News