गोरखपुर और फूलपुर से लेकर कर्नाटक तक में विपक्षी एकजुटता का ही नतीजा रहा है कि बीजेपी को हार मिली। यह बड़ी बात जानते हुए भी विपक्षी मंसूबे मृगतृष्णा ही साबित हुए हैं। दरअसल निजी स्वार्थ, लालच और अहंकार विपक्षी राजनेताओं के राह में सबसे बड़े रोड़े हैं।

बतौर उदाहरण बेगसूराय सीट पर विपक्ष एकता नहीं बना सका और कन्हैया कुमार का मुकाबला जितना बीजेपी के गिरिराज सिंह से है, उतना ही मोदी विरोधी आरजेडी के तनवीर हसन से भी है। यहां अगर विपक्ष एक होता तो कन्हैया की जीत की संभावना ज़्यादा होती। ठीक इसी तरह से यूपी में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन हो चुका है। लेकिन कांग्रेस को मिलने वाले वोटों से भाजपा की राह आसान ही होगी।

आपको याद दिला दें कि कर्नाटक में जब कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में पूरा विपक्ष इकट्ठा हुआ था। तब सोनिया-मायावती की गलबहियों वाली तस्वीर देखकर ऐसा लगा था कि इस बार के चुनाव में पीएम मोदी को विपक्ष की एकजुटता का सामना करना होगा और जीत की राह उनके लिए आसान नहीं होगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं दिखा।

अगर राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस तथा बसपा के बीच गठबंधन होता तो बीजेपी की कई सीटें कम हो सकती थीं, लेकिन इन दोनों राज्यों में कांग्रेस-बीएसपी के अलग अलग लड़ने का फायदा बीजेपी को ही मिलने वाला है। अब समझौता नहीं होने के लिए कांग्रेस और बसपा एक दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं।

अगर हम 42 सीटों वाले राज्य पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां ममता, कांग्रेस और वामपंथी सीधे तौर पर मोदी विरोधी ताकते हैं। इस राज्य में भी कांग्रेस और ममता अलग-अलग लड़ रही हैं, क्योंकि दीदी कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ने को तैयार नहीं हुईं। संभव है कांग्रेस और सीपीएम के बीच गठबंधन हो जाए।

इस बार केरल के वायनाड सीट से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं, जोकि कांग्रेस की नज़र में एक सुरक्षित सीट है। वायनाड में पिछले दो चुनाव भी कांग्रेस ने ही जीते थे। मतलब साफ है, कांग्रेस सीपीएम की कोई सीट छीन नहीं रही है लेकिन इस पर सीपीएम ने अपना जबरदस्त विरोध जताया है। इसीलिए कर्नाटक के चिकबल्लापुर से कांग्रेस-जेडीएस के साझा उम्मीदवार वीरप्पा मोइली के ख़िलाफ़ सीपीएम ने अपना उम्मीदवार उतार दिया है। जाहिर है, कम्युनिस्ट उम्मीदवार की मौजूदगी से बीजेपी को फ़ायदा हो सकता है क्योंकि मोदी विरोधी वोट बंट जाएंगे।

ठीक इसी तरह दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और गोवा में कांग्रेस और आप एकजुट होकर लड़ते तो बीजेपी को मुश्किल में डाल सकते थे, लेकिन ऐसा होने की संभावना बेहद कम है। दिल्ली में आप-कांग्रेस के गठबंधन को लेकर कभी हां तो कभी ना, मजाक का विषय बन चुका है।

दूसरी तरफ बीजेपी ने बिहार में नीतीश कुमार को अपनी जीती हुई सीटें तक दे दीं, वहीं हर बात पर बीजेपी पर निशाना साधने वाली शिवसेना को भी मना लिया। असम गण परिषद को दोबारा एनडीए का हिस्सा बना लिया।

गौरतलब है कि मोदी विरोधी गठबंधन के नेता कह रहे हैं कि चुनाव के नतीजे आने के बाद विपक्ष एकजुट होगा, लेकिन उनका मुकाबला जोड़तोड़ के कौशल में माहिर अमित शाह से होगा और इसमें किसे बढ़त हासिल है, सब जानते हैं। इसके ठीक विपरीत विपक्षी खेमे में आज जितनी तकरार देखने को मिल रही है, चुनाव के नतीजे आने के बाद कम होगी, ऐसा कहने का कोई भी आधार नजर नहीं आ रहा।

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