महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर भी हुए थे कंगाल, यज्ञ करने के लिए भी नहीं बचा था धन !
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महाभारत एक महायुद्ध की कथा मात्र नहीं है बल्कि रहस्यों का भंडार है। आप महाभारत के सभी पात्रों को जितना समझने की कोशिश करेंगे, आपको उसमें उतना ही रहस्य नजर आएगा। महाभारत के मुख्य पात्र भगवान श्रीकृष्ण ऐसे इकलौते पात्र थे, जिन्हें महाभारत में होने वाली हर घटना की पहले से ही जानकारी होती थी। इस स्टोरी में हम आपको महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक युधिष्ठिर के बारे में रोचक जानकारी देने जा रहे हैं।
महाभारत महाकाव्य के अनुसार, महायुद्ध के पश्चात युधिष्ठिर भी इतने कंगाल हो गए थे कि उनके पास यज्ञ करने के लिए भी धन नहीं बचा था। जी हां, महाभारत युद्ध के बाद पांडवों के पास इतना धन भी नहीं बचा था कि वे अश्वमेध यज्ञ कर सकें। महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडव हिमालय से धन लेकर आए।
कहा जाता है कि जब महर्षि वेदव्यास ने युधिष्ठिर से कहा कि तुम्हे अपने कुल के बंधु-बांधवों की शांति के लिए अश्वमेध यज्ञ करना चाहिए। तब युधिष्ठिर ने कहा कि मेरे पास इस समय दक्षिणा में दान देने जितना भी धन नहीं है, तो मैं इतना बड़ा यज्ञ कैसे कर सकता हूं।
तब महर्षि वेदव्यास ने बताया कि पूर्व समय में समस्त धरती पर महर्षि मरुत राज करते थे। उन्होंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था, उस यज्ञ में उन्होंने ब्राह्मणों को बहुत सोना दान में दिया था। सोना बहुत अधिक होने के कारण ब्राह्मण उसे अपने साथ नहीं ले जा सके। महर्षि वेदव्यास ने कहा कि वह सोना आज भी हिमालय पर है, उस धन से अश्वमेघ यज्ञ किया जा सकता है। इसके बाद युधिष्ठिर ने महर्षि वेदव्यास द्वारा बताए गए इस कार्य को ठीक वैसा ही करने का निर्णय लिया।