उत्तर प्रदेश की प्राचीन धार्मिक नगरी वाराणसी में स्थापित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों में मनुष्य के अभ्युदय के लिए काशी विश्वनाथ के दर्शन आदि का महत्व‍ विस्ता‍रपूर्वक बताया गया है। हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि शिव के त्रिशूल की नोंक पर बसा है वाराणसी शहर।

वैसे तो पूरे वर्ष काशी विश्वनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन सावन महीने में इस मंदिर में श्रद्धालुओं का जैसे सैलाब उमड़ पड़ता है। इस मंदिर में दर्शन-पूजन के लिए आने वालों में आदिशंकराचार्य, संत एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास जैसे सैकड़ों महापुरुषों का नाम शामिल हैं।

साल 1676 में बीकानेर के राजकुमार सुजान सिंह और रीवा नरेश भावसिंह काशी यात्रा पर आए थे। इसके बाद वर्ष 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने इस ​मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

वर्ष 1853 में पंजाब के महाराजा रणजीतसिंह ने 1,000 किलोग्राम शुद्ध सोने से मंदिर के शिखरों को स्वर्ण मंडित किया जिसका स्वरूप आज भी विद्यमान है।

श्रुति स्मृति तथा पुराणों के मुताबिक, काशी सकल ब्रह्मांड के देवताओं की निवास स्थली है, जो भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। शिवपुराण के अनुसार, काशी को सभी प्राणियों के लिए मोक्षदायक कहा गया है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि वाराणसी में मनुष्य के देहावसान पर स्वयं महादेव उसे मुक्तिदायक तारक मंत्र का उपदेश करते हैं।

Related News