कहते है दुनिया में कुछ चीज़े कभी भी हमेशा के लिए नही होती और राजनीति में तो बिल्कुल भी नही| चीज़े बदलती है तब या तो निजी स्वार्थ हो तब या कुदरती कमाल से या निस्वार्थ प्रेम से | ऐसा ही एक बदलाब राजनीति में भी हुआ एक लम्बे अर्से के बाद| 25 साल बाद सपा और बसपा का गठबंधन, अब ये तो वक्त ही जाने ये गठबंधन कितना लम्बा चलता है| पर बात मुद्दे की ये है कि ये तोड़ हुआ कैसे?

1993 में राम मंदिर आंदोलन के बाद बीजेपी की लहर दिखाई देने लगी थी | बीजेपी को बाहर करने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और बीएसपी प्रमुख कांशीराम ने विधानसभा चुनाव में गठजोड़ किया था | इसके बाद बसपा के समर्थन से मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दूर तक न जा सका और दो साल में ही टूट गया |

मायावती ने 2 जून 1995 को गठबंधन टूटने के एक दिन बाद ही कांशीराम के कहने पर लखनऊ के वीआईपी गेस्ट हाउस के कॉमन हॉल में बसपा विधायकों और नेताओं की मीटिंग को आयोजित किया। करीब शाम के चार बजे थे की , लगभग दो सौ समाजवादी पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं ने वीआईपी गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया | बसपा के खिलाफ़ नारेबाजी चालू हो गई और मारपीट तक बात पहुँच गई। मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। थोड़ी देर में ये भीड़ मायवावती के कमरे तक पहुंच गई और मायावती को 'जातिसूचक' और अभद्र गाली देते हुए दरवाजे पीटने लगी | काफ़ी देर बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और डीएम के मौके पर आने के बाद मुश्किल से सपा के उपद्रवी, दंगा करने वाले कार्यकर्ताओं पर काबू पाया और मायावती की जान बचाई गई।

उत्तर प्रदेश की इस घटना के काले अध्याय को गेस्ट हाउस कांड कहा जाता है। इस कांड के अगले दिन 3 जून, 1995 को मायावती ने यूपी के सीएम के तौर पर पहली बार शपथ ग्रहण की| जबकि भाजपा के साथ उनका ये गठबंधन महज पांच महीने में ही टूट गया और वो सत्ता से बेदखल हो गई।

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