आपको जानकारी के लिए बता दें कि गुजरात के बनासकांठा का सुई गांव जो भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर मौजूद आखिरी गांव है। यहां स्थित नाडेश्वरी माता का मंदिर स्थानीय जनमानस के अलावा बीएसएफ जवानों के लिए आस्था और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

बता दें कि बनासकांठा से महज 20 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान की सीमा शुरू हो जाती है। यह क्षेत्र बीएसएफ की निगरानी में ही रहता है। इसलिए बनासकांठा बॉर्डर पर जब भी किसी जवान की ड्यूटी लगती है, तब वह ड्यूटी देने से पहले मंदिर में माथा टेक कर ही जाता है।

पहले यहां पर कोई मंदिर नहीं था, एक छोटा सा मां का स्थान था, लेकिन 1971 के युद्ध के बाद उस वक्त के कमान्डेंट ने इस मंदिर का निर्माण कराया। बीएसएफ का एक जवान यहां पुजारी के तौर पर ही अपनी ड्यूटी करता है।

मान्यता है कि मां नाडेश्वरी स्वयं जवानों की जिंदगी की रक्षा करती हैं। इस मान्यता के पीछे बहुत ही रोचक कहानी है। बता दें कि साल 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के वक्त इंडियन आर्मी की टुकड़ी पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गई और फिर रास्ता भटक गई। रन का इलाका होने की वजह से उन्हें रास्ता भी नहीं मिल रहा था। कहा जाता है कि कमान्डेंट ने मां नाडेश्वरी से मदद की गुहार की और सकुशल सही जगह पहुंचाने की विनती की। इसके बाद भारतीय सेना की टुकड़ी की सकुशल अपने बेस कैंप तक वापस आ गई, इस दौरान किसी जवान को खरोंच तक नहीं आई।

मान्यता है कि जब तक इस बॉर्डर मां नाडेश्वरी देवी विराजमान हैं, किसी भी जवान को कुछ नहीं हो सकता है। मंदिर के ट्रस्टी खेंगाभाई सोलंकी के मुताबिक, 1971 में जब जवान अपना रास्ता भटक गए और पाकिस्तान की सीमा में पहंच गए थे, तब खुद मां ने ही उन्हें रास्ता दिखाया था।

Related News