हमारे देश में हर साल महाशिवरात्रि बड़े धूम-धाम से मनाई जाती है। इस दिन सभी श्रद्धालु शिवलिंग पर दूध और जल अर्पित करते हैं। इस स्टोरी में हम आपको बताने जा रहे हैं कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है। हिंदू धर्म ग्रंथों में महाशिवरात्रि को लेकर पौराणिक कथाएं वर्णित हैं।

सबसे पहले आपको बता दें कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। इस बारे में पहली मान्यता यह है कि इसी दिन भगवान शंकर और मां पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए सभी श्रद्धालु और शिवभक्त प्रत्येक वर्ष महादेव के विवाह की वर्षगांठ मनाते हैं।

भागवत पुराण के मुताबिक, समुंद्र मंथन के समय वासुकी नाग के मुख से भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र के जल में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। भयंकर विष की ज्वालाएं चराचर जगत को जलाने लगी।

इस दुष्कर स्थिति से बचने के लिए सभी देवगण भगवान भोलेनाथ के पास गए और इस संकट से मुक्ति की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान शंकर ने अपनी योग शक्ति विष को पीकर उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से भोलेनाथ नीलकंठ कहलाए।

महादेव द्वारा इस महान संकट को झेलने और विष की शांति हेतु चंद्रमा की चांदनी में सभी देवों ने पूरी रात शिव की महिमा का गुणगान किया। वो महान रात्रि तब से महाशिवरात्रि के नाम से जानी गई।

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