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बिहार के तीन बार और पहले दलित मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री का परिवार आज की तारीख में गरीबी का दंश झेल रहा है। पूर्णिया बस स्टैंड से कुछ ही दूर मजदूरों की मंडी लगती है। काम के इंतजार में खड़े इन मजदूरों में बसंत और कपिल पासवान भी शामिल रहते हैं।

जी हां, आपको बता दें कि बसंत और कपिल पासवान बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री रहे भोला पासवान शास्त्री के पोते हैं। ये लोग प्रतिदिन पूर्णिया के केनगर प्रखंड के बैरगाछी से काम की तलाश में 14 किलोमीटर की दूरी तय करके आते हैं। दिनभर मजदूरी करते हैं और लौट जाते हैं। भोला पासवान की कोई संतान नहीं थी, उनकी जिंदगी के सहारे उनके भाईयों के बच्चे ही रहे। भोला पासवान को मुखाग्नि देने वाले उनके भतीजे विरंची पासवान अब बूढे हो चुके हैं।

विरंची पासवान कहते हैं कि मेरी और मेरे बच्चों की पूरी जिंदगी मजदूरी करते हुए कट गई। बहुत मुश्किल से राशन कार्ड मिला है, लेकिन यह भी एक ही है। बेटे तीन हैं इसलिए हमको तीन राशन कार्ड दिलवा दीजिए, जिंदगी थोड़ी आसान हो जाएगी।

इस परिवार के पास अपनी कोई जमीन नहीं है। इस परिवार का कहना है कि गांव में भोला पासवान का स्मारक बनाने के लिए तीन डेसीमिल जमीन सरकार को दे दी। विरंची पासवान कहते हैं कि जब डीएम साहब ने कहा कि आपके चाचा का स्मारक बनेगा, तो हमने जमीन दे दी, क्या करते?

विरंची पासवान के पोते-पोतियां पास के ही भोला पासवान प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते है। विरंची के बेटे बसंत पासवान गुस्से से कहते हैं कि हर साल 21 सितंबर को भोला बाबू की जयंती रहती है, तो प्रशासन को हमारी याद आती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि नेताओं के इस धनबल और बाहुबल के बीच सादगी, सरलता और ईमानदारी से जीने वाले भोला पासवान शास्त्री जैसे नेता भी थे।

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