2019 के आम चुनावों में जोरदार जीत हासिल कर नरेंद्र मोदी ने पांच साल के लिए दूसरा कार्यकाल हासिल कर लिया है। इन 5 साल में लोगों में मोदी को लेकर जिस तरह की आस्था उभरी है, ऐसा भारत की आज़ादी के बाद ये पहली बार हुआ है, कि किसी एक व्यक्ति का हिंदू समाज पर इतना प्रचंड रौब और पकड़ राजनीतिक दृष्टि से बन गई है। ऐसा न जवाहर लाल नेहरू के जमाने में था और न ही इंदिरा गांधी के जमाने में।

वैसे विपक्ष दल की बात करे तो वो बहुत कमज़ोर था। हर तरह से कमज़ोर था। विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर गंठबंधन नहीं कर पाया, उसने जनता को एक तरह से ये ही संदेश दिया कि इनमें कोई राजनीतिक दल ऐसा नहीं है जो अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर सोच सकता है। कोई न्यूनतम साझा कार्यक्रम नहीं बना पाए।

मोदी ने जो व्याख्या बना रखी है कि पुरानी व्यवस्था है वो इतनी कमज़ोर और परिवार पर निर्भर हो चुकी है कि उसमें तो कोई दम बचा नहीं। वो पुरानी व्यवस्था नेहरू-गांधी परिवार से जुड़ी हुई थी। वो व्यवस्था भ्रष्ट हो चुकी है। उस व्यवस्था ने भारत को ग़रीब रखा।

लोग मानते थे कि भारतीय राजनीति का केंद्र हमेशा मध्यमार्गी रहेगा। लोग मज़ाक करते थे कि बीजेपी को अगर जीतना होगा तो उन्हें भी कांग्रेस की तरह बनना पड़ेगा। लेकिन वो मध्यमार्ग आज ख़त्म हो चुका है।

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