हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम शेषनाग के अवतार थे। चूंकि बलराम जी शेषनाग के अवतार थे, इसलिए वे अपने क्रोध पर काबू नहीं रख पाते थे। शास्त्रों में कहा गया है क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। इसी कारण बलराम जी से ऐसी गलती हुई कि पूरा संत समाज इनके विरुद्घ हो गया। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिए बलराम जी ने ऐसा कौन सा महापाप कर दिया था।

बता दें कि महर्षि व्यास के प्रिय शिष्य सूत जी पुराणों के ज्ञाता थे और ऋषियों के आश्रम में जाकर पुराण कथा सुनाया करते थे। इसलिए संत समाज में इनका बड़ा आदर था। एक बार सूत जी पुराण कथा सुना रहे थे, इसी बीच बलराम कहीं से आश्रम में पहुंच गए।

बलराम जी को देखकर सभी संत उठकर खड़े हो गए और नमस्कार करने लगे, लेकिन कथा वाचक सूत जी अपने आसन पर बैठे रहे। क्योंकि पुराण कथा सुनाते समय बीच में उठना नियम विरुद्घ था। अब बलराम जी ने समझा कि सूत जी उनका अनादर कर रहे हैं। इसलिए क्रोध में आकर बलराम जी ने अपनी तलवार से सूत जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।

फिर क्या था, संत समाज बलराम जी के इस व्यवहार से आहत हो गया। संतों ने बलराम जी से कहा कि आपने एक निर्दोष ब्राह्मण की हत्या करके महापाप किया है। इसलिए आपको ब्रह्महत्या का पाप लगेगा।

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