बता दें कि मोहिनी एकादशी को भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है, व्रत-उपवास किए जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 15 मई को है, इस तिथि को मोहिनी एकादशी कहा जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार धारण करके समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को राक्षसों से बचाया था। मोहिनी एकादशी की व्रत कथा कुछ इस प्रकार है।

समुद्र मंथन के अंत में जब भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। तब दैत्यों ने धनवंतरी के हाथों से अमृत कलश छीन लिया और उसे लेकर भागने लगे। इसके बाद अमृत पीने के लिए सभी दैत्य आपस में ही लड़ने लगे। जब भगवान विष्णु ने देखा कि दैत्य अमृत कलश लेकर भाग रहे हैं और वे देवताओं को नहीं देंगे। ऐसे में भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और दैत्यों के समुख आ गए। वह दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी ही थी।

अब मोहिनी को देखकर दैत्य मोहित हो गए और अमृत के लिए आपस में लड़ाई करना बंद कर दिया। सर्वसम्मति से उन्होंने वह अमृत कलश मोहिनी को सौंप दिया ताकि वे असुरों और देवताओं में अमृत का वितरण कर दें।

तब मोहिनी के अवतार भगवान विष्णु ने देवताओं और असुरों को अलग अलग कतार में बैठने को कहा। कतार में बैठे दैत्य मोहिनी पर मुग्ध होकर असुर अमृतपान करना ही भूल गए। इसके बाद भगवान विष्णु देवताओं को अमृतपान कराने लगे। इसी बीच राहु नाम का असुर देवताओं का रूप धारण करके अमृतपान करने लगा, तभी उसका असली रूप प्रत्यक्ष हो गया। इस भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसके सिर को काट दिया।

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