समुद्रगुप्त की गिनती न केवल गुप्त वंश के बल्कि सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में होती है। समुद्रगुप्त के इतिहास का सर्वप्रमुख स्रोत उसी का अभिलेख है जिसे ‘इलाहाबाद स्तम्भलेख’ अथवा प्रयाग प्रशस्ति कहा जाता है।

जब समुद्रगुप्त को सिंहासन मिला तो उस समय गुप्त राज्य इतना बड़ा नहीं था और बहुत ही छोटा था। देश छोटे छोटे राज्यों में बंटा था और ज्यादातर राज्य एक दूसरे के दुश्मन थे। तब समुद्रगुप्त ने सभी राज्यों को जीत कर एक बड़ा और शक्तिशाली साम्राज्य बनाने के फैसला किया। उन्होंने उत्तर-भारत के नौ राज्यों को हराकर अपने राज्य में शामिल किया।

समुद्रगुप्त की उपलब्धियों का जो विवरण जो हमारे पास है उसे देख कर हम कह सकते हैं कि वे एक अद्वितीय योद्धा और पराक्रमी थे। उनकी वीरता की कहानियां आपको कई किताबों में देखने और पढ़ने को मिलेगी। इतिहासकार स्मिथ ने समुद्रगुप्त की वीरता पर मुग्ध होकर उसे ‘भारतीय नेपोलियन’ कहना पसन्द किया। ऐसा माना जाता है कि समुद्रगुप्त ने जो भी युद्ध लड़े उनमे से कोई भी युद्ध में वो नहीं हारा।

अपनी विजयों के परिणामस्वरूप समुद्रगुप्त ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की जो उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में विन्ध्यपर्वत तक तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में पूर्वी मालवा तक विस्तृत था।

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